SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यदि खानदानी और कुलीन व्यक्ति के साथ विवाह सम्बन्ध हुआ हो तो वह धर्म-कार्य में सहायक होता है। इस दृष्टि से ही पत्नी को धर्म-पत्नी कहा जाता है। धर्म-पत्नी अर्थात् धर्म में लगाने वाली और पाप-मार्ग से दूर करने वाली पत्नी। ऐसी पत्नी महान पुण्योदय से ही प्राप्त होती है। इसी प्रकार से धार्मिक पति भी पुण्योदय से ही प्राप्त होता है। __विवाह करने की इच्छा पापोदय से होती है, परन्तु विवाह के लिये उत्तम पात्र पुण्योदय से प्राप्त होता है। उत्तम से तात्पर्य रंग-रूप में उत्तम, खानदानी तथा धर्म निष्ठ से है। हमें रंग-रूप को और दिखाव को अत्यन्त महत्व नहीं देना चाहिये, परन्तु खानदान एवं धर्म-निष्ठा को पूर्ण महत्व देना चाहिये। ___ यदि रूप-रंग एवं दिखावे में कम हो, परन्तु खानदानी और धार्मिक पात्र प्राप्त होता हो तो रूप आदि को गौण करके भी उस उच्च कुलीन एवं धार्मिक पात्र को पसन्द करना चाहिये। एक बात अच्छी तरह हृदय में दृढ़ कर लेनी चाहिये कि वैवाहिक जीवन भोग-विलास के लिये नहीं होकर योगसाधना के लिये है। काम-वासना के अत्यन्त उपभोग के लिये विवाह नहीं होता। जीवन में ब्रह्मचर्य रूपी योग की यथा संभव अधिकाधिक साधना हो और उसमें कभी तीव्र मोह के उदय से वासना उत्पन्न हो तो उसका शमन करने के लिये कामोपभोग होता है। यह कामोपभोग अत्यन्त मर्यादित होना चाहिये और सदाचार के अनुरूप होना चाहिये। अब जब वैवाहिक जीवन मुख्यत: ब्रह्मचर्य आदि धर्म की साधना के लिये ही है तो प्राप्त जीवन-साथी रूपी निमित्त भी उत्तम हो, धार्मिक हो तो ही उस साधना में सफलता प्राप्त होती है। यदि जीवन-साथी अत्यन्त कामी हो, क्रोधी हो, विषय-वासना की तीव्रता से युक्त हो तो आप ब्रह्मचर्य आदिधर्मों की आराधना कैसे कर सकोगे? उच्च कुल का धर्मनिष्ठ व्यक्ति जीवन-साथी के रूप में प्राप्त हो तो कभी समय आदि के शुभ मार्ग पर जाने में भी वह आप का सहायक होगा, अवरोधक नहीं। वज्रबाहु एवं मनोरमा की अद्भुत कथा - महात्मा वज्रबाहु रामचंद्रजी के पूर्वज थे। युवावस्था प्राप्त होने पर उनके माता-पिता में राजा इभवाहन की पुत्री मनोरमा के साथ उनका विवाह कर दिया। ससुराल के उत्तम आतिथ्य का आनन्द लेकर उन्होंने अपने निवास की ओर प्रयाण किया। स्वयं वज्रबाहु, उनकी पत्नी मनोरमा और उनका साला उदय सुन्दर तीनों साथ साथ एक सुन्दर रथ में बैठकर जा रहे थे। प्रात:काल का समय था। जब उनका रथ एक टेकरी के समीप होकर आगे बढ़ रहा था, तब वहाँ टेकरी पर गुणसागर नामक एक महात्मा ध्यानस्थ खड़े थे। उन्हें देख कर वज्रबाहु का अन्तर मुनिवर के चरणों में मानो झुक गया। वे बोले, "प्रबल पुण्य योग से आज इन मुनिवर के मैंने दर्शन CCCCCCCS 57 9009090
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy