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________________ GROGRA909090HROO यह बात सुनकर उनके मुँह से तक नि:श्वास निकला कि, "राजेश्वरी ही नरकेश्वरी होता है। राज्य की कुशलता के लिये राजा को अनेक पाप करने पड़ते हैं। अत: राजा तो मरणोपरान्त प्राय: नरक में ही जाते हैं।तो क्या मेरा पुत्र मरणोपरान्त नरक में जायेगा? नहीं, मैं ऐसा तो कैसे होने दूं?" __वे तुरन्त उठ खड़े हुए और कहीं से 'काणस' लाकर पुत्र चाणक्य के मुँह के उस लम्बे दाँत को उन्होंने घिस डाला और ज्योतिषी को पूछा, "अब कहिये ज्योतिषी! क्या अब मेरा पुत्र राजा होगा?" ज्योतिषी ने कहा, "नहीं, अब यह राजा तो नहीं होगा, परन्तु किसी महान् राजा का राज्य-गुरु अवश्य बनेगा।" फिर तो पुत्र के हितैषी पिता के चहरे पर पुत्र के भावी नरक के निवारण होने का आनन्द दमक उठा। पुत्र के इस लोक की ही नहीं, परन्तु उसके जन्म-जन्मान्तर के सुख-दुःख का विचार करना और वास्तव में उसके हित की चिन्ता करना शिष्ट जनों के अतिरिक्त किसे सूझेगा? सत्यनिष्ठा-शिष्ट जनों का उत्तम गुण नीति, नियम एवं सत्य के आदर्शों की शिष्ट जन अपने जीवन में रक्षा करते। शत्रु भी यदि उन्हें पूछते तो शिष्ट जन उन्हें सत्य का ही मार्ग बताते थे। यदि उनका स्वयं का ही पुत्र अधर्म के मार्ग पर होता तो उसे भी शिष्ट जन धर्म-मार्ग की ही राह बताते थे। महाभारत का एक प्रसंग है। कौरवों और पाण्डवों के मध्य युद्ध की रण-भेरी बज चुकी थी। दुर्योधन शस्त्रों से सुसज्जित होकर अपनी माता गांधारी का आशीर्वाद प्राप्त करने गया। दुर्योधन दुष्ट व्यक्ति माना जाता था। उसका युद्ध सचमुच अधर्म स्वरूप था। फिर भी वह अपनी माता का आशीर्वाद लेने का शिष्टाचार भूला नहीं। प्राचीन काल का दष्ट व्यक्ति भी माता के चरणों में नमस्कार करके आशीर्वाद लेने का शिष्टाचार करता और आज तथाकथित शिष्ट जन श्रेष्ठ कार्य के लिये प्रणाम करते समय भी माता के चरणों में नमस्कार करने में लज्जित होते हैं। बताइये, कौन दुष्ट है और कौन शिष्ट है? दुर्योधन जब गांधारी के पास आशीर्वाद लेने गया तब उसने उसे क्या आशीर्वाद दिया था? उसने कहा था, "वत्स! यतो धर्मस्ततो जयः।'' जहाँ धर्म है वहीं विजय है।" अर्थात् जिस पक्ष में धर्म होता है उस पक्ष की ही विजय होती है।" गांधारी को ज्ञात था कि मेरा पुत्र अधर्म के पक्ष में है और अधर्म के पक्षधर को "तू विजयी हो" ऐसा आशीर्वाद कैसे दिया जा सकता है? ऐसा करने पर हमें भी अधर्म का पक्षधर माना जायेगा। शिष्ट जन यह कैसे मान्य कर सकते हैं? ROGRESS 0 SSCSCGOOON
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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