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________________ इधर-उधर देखा तो एक डिब्बे में कुछ चूर्ण के समान वस्तु उसे प्राप्त हुई, जिसे चखने पर सात हुआ कि वह नमक है। उसने सोचा, "अब क्या हो? जिन घर का मैंने नमक खा लिया वहाँ अब चोरी कैसे की जा सकती है? यदि चोरी कर लूँ तो तो मैं नमकहशम कहलाऊँगा। आर्य देश की संस्कृति यह करने का निषेध करती है।" ___ और चोर चोरी किये बिना ही वहाँ से जाने लगा। उसने चोरी की नहीं थी, जिससे अब उसे तनिक भी भय नहीं था। अत:वह बेपर्वाही से चलने लगा और चलते समय उसका पाँव किसी बर्तन से टकराया। घर का स्वामी जग गया। उसने पुकार कर पूछा, "अरे! कौन है?" चोर बोला, "मैं चोर हूँ।" घर का स्वामी उसके समीप पहुँचा। प्रकाश जलाने पर उसने वहाँ एक व्यक्ति खड़ा हुआ देखा।स्वामी ने पूछा, "भाई! क्या तू चोर है? चोर कदापि यह कहता होगा कि मैं चोर हूँ? अत: सत्य सत्य कह, तू कौन है?" इस पर चोर ने उत्तर दिया, "सेठजी! सचमुच, मैं चोर ही हूँ और आपके घर में चोरी करने के लिये ही आया था, परन्तु आपके रसोईघर में एक डिब्बे में से कुछ खाने की वस्तु लेते समय मेरे हाथ में नमक आ गया और मैंने वह नमक खा लिया। सब बताइये, मैं आपके घर में चोरी कैसे कर सकता हूँ? एक तो चोरी करने का पाप करना और फिर जिसके घर का नमक खाया उसके घर चोरी करना? नहीं सेठ, यह महा पाप मुझसे नहीं होगा।" __यह कहते ही चोर तुरन्त फुर्ती से बाहर चला गया। सेठजी चोर के अन्तर में निहित इस सद्गुण की मन ही मन प्रशंसा करते रहे। आर्य संस्कृति में चोर में भी शिष्टता के ऐसे गुण दृष्टिगोचर होते हैं और आज कल साहुकार माने जाने वाले अनेक धनवान व्यक्तियों में भारी दुर्जनता दृष्टिगोचर होती है। कितना शीर्षासन। सन्तान के हित की चिन्ता __चाणक्य के पिता अत्यन्त धनवान थे। यह उनका प्रिय पुत्र था। चाणक्य के जन्म के पश्चात् की यह बात है। अष्टांग निमित्त का ज्ञाता एक ज्योतिषी चाणक्य के पिता के घर अतिथि होकर आया था। उन्होंने उसका अत्यन्त आतिथ्य किया। वह उत्तम उत्तम मिष्टान्नों का भोजन करके बैठा हुआ था। तब उसकी दृष्टि बालक चाणक्य पर पड़ी और उसके मुँह में लम्बा, सुन्दर दाँत देख कर वह बोला, "वाह ! यह तो अत्यन्त विस्मयकारी लक्षण है।" चाणक्य के पिता ने ज्योतिषी की बात सुनकर सविस्तार बात कहने का निवेदन किया। ज्योतिषी ने कहा, "आपके पुत्र के मुँह में यह लम्बा दाँत अत्यन्त शुभ लक्षण है। इसके आधार पर में कह सकता हूँ कि यह बड़ा होने पर अत्यन्त विशाल भूखण्ड़ का स्वामी बनेगा अर्थात राजा होगा।"
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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