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________________ माता ने कहा, "यतो धर्मस्ततो जयः।" दुर्योधन माता के वचनों का मर्म समझ गया। उसने मन में सोचा, ''माता का कथन सर्वथा सत्य है। मैं भी समझता हूँ कि धर्म (सत्य) तो पाण्डवों के पक्ष में ही है। अत: मेरी विजय की आशा अत्यन्त कम है।" अठारह दिनों तक महाभारत का वह युद्ध चलता रहा। युद्ध में जाने से पूर्व दुर्योधन माता गांधारी का आशीर्वाद लेने जाता। गांधारी दुर्योधन को नित्य यही आशीर्वाद देती - "यतो धर्मस्ततो जयः" अपने सगे पुत्र को भी परोक्ष रूप से "तू अधर्म के पथ पर है" यह सूचित करने वाली गांधारी के समान सत्य निष्ठा रूपी शिष्ट गुण इस विश्व में कितने मनुष्यों में होगा? शिष्टाचार का कैसा अनुपम आदर्श है? शिष्ट जनों को मान्य करना चाहिये और उनके उत्तम आचार-विचारों का हमें सम्मान करना चाहिये। उनके उन विचारों और आचारों की अत्यन्त प्रशंसा की जाना चाहिये। इस प्रकार शिष्ट जनों की प्रशंसा करने वाला व्यक्ति सही अर्थ में 'सद्गृहस्थ' हो सकता है। प्रशंसा करने से दो लाभ होते हैं - 1. जिस व्यक्ति की आप प्रशंसा करेंगे वह वस्तु आपके भीतर प्रविष्ट होने लगेगी। यदि आप सद्गुणों एवं सद्गुणवानों की प्रशंसा करोगे तो धीरे धीरे आपके भीतर सद्गुण आने लगेंगे। आप भी सद्गुणी हो जायेंगे। यदि आप दुष्ट व्यक्तियों एवं दुर्गुणों की प्रशंसा करोगे तो आपके भीतर भी शनैः शनैः दुर्गुण प्रविष्ट होते रहेंगे और आप भी एक बार दुष्ट, दुर्गुणी हो जायेंगे। 2.जिनकी आप प्रशंसा करेंगे, उन गुणों के प्रति अन्य मनुष्य सम्मुख होते जायेंगे। धार्मिक क्षेत्र में आज जैन धर्म में 'तप' की अत्यन्त प्रशंसा होती है। तपस्वी मनुष्यों का सम्मान होता है, उनकी शोभा-यात्राऐं निकलती हैं। अत: तप करने वाले मनुष्यों की संख्या में दिन प्रति दिन वृद्धि होती प्रतीत होती है। ___ आजकल बम्बई में ब्रह्मचर्यव्रतधारी व्यक्तियों के सम्मान के कार्यक्रम आयोजित होने लगे हैं, जो अत्यन्त प्रशंसनीय हैं। इस प्रकार उनकी सार्वजनिक रूप से प्रशंसा होने से विश्व में ब्रह्मचर्य की महिमा फैलेगी और धीरे धीरे ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले जीवों की संख्या में भी वृद्धि होगी। यद्यपि इस व्रत का पालन करना अत्यन्त कठिन है, जिससे ब्रह्मचर्य-व्रतधारी व्यक्तियों की तुरन्त वृद्धि होती प्रतीत नहीं होगी, परन्तु दीर्घ काल में इस व्रत के आराधकों एवं पालकों की संख्या में अभिवृद्धि अवश्य होगी। इससे कम से कम ब्रह्मचर्य का आदर्श तो लोगों में प्रतिस्थापित होगा ही।
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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