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________________ यहाँ यह भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि शास्त्रकारों का उपदेश "विवाह करना' ऐसे विवाह-विषयक विधान करने का नहीं है, परन्तु 'समान गोत्र के व्यक्ति के साथ विवाह नहीं करना चाहिये' इस प्रकार समान गोत्र में विवाह का निषेधक है। काम-पुरूषार्थ को भी यदि सदाचार रूपी धर्म से युक्त नहीं बनाया जाये तो वह कामपुरुषार्थ नहीं रहता। वह तो केवल काम-भोगों का अखाड़ा ही कहा जायेगा, भोग-सुखों की विष्टा को चूँथने का पशुओं का सा प्रयास ही कहा जायेगा और जब काम को सदाचारों-सुसंस्कारों आदि से नियन्त्रित करना हो तो भिन्न गोत्र वालों के साथ विवाह आदि सांस्कृतिक व्यवस्था को स्वीकार करने योग्य मानी गई है। धन की लालसा सभी को जलायेगी जब तक जिस व्यक्ति के हृदय में धन के प्रति अत्यन्त आसक्ति होगी, जीवन का उत्कृष्ट साध्य धन ही होगा, वह व्यक्ति प्राय: समस्त प्रकार के पाप करने के लिये तत्पर हो जायेगा। उसके कषाय, उसकी वासनाऐं, उसकी धन-भूख की भूखी प्रवृत्तियाँ उसे तो जलायेंगी ही, परन्तु उसके आश्रितों एवं उसके सम्पर्क में आने वालों सबको वह जलाये बिना नहीं रहेंगी। धन की अत्यन्त लालसा उसे इस जीवन में भी सूख और शान्ति प्रदान नहीं करेगी, क्योंकि धन का तीव्र लालची व्यक्ति नीति अथवा अनीति के नियमों को तोड़-फोड़कर फैंक देगा, जिससे उसका यह जीवन वास्तविक सुखमय नहीं रहेगा। इस जीवन में सुख नहीं मिलने पर वह शान्त भी नहीं होगा। परलोक में उसके लिये दुर्गतियों के द्वार खुलकर राह देखते होंगे, कषाय, संक्लेश एवं निरन्तर अपनी ही उदर-पूर्ति कर डालने की विकराल वृत्तियाँ उसे कहीं भी चैन से जीने नहीं देंगी। काम-पुरूषार्थ की अपेक्षा अर्थ-पुरूषार्थ अधिक भयानक __ अध्यात्म-सार नामक ग्रंथ में पूज्य न्याय विशारद, न्यायाचार्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज ने अर्थ पुरुषार्थ को काम-पुरुषार्थ की अपेक्षा अधिक भयानक बताया है। यदि काम-पुरुषार्थ अधम' है तो अर्थ-पुरुषार्थ 'अधमाधम' है, क्योंकि काम-भोगों को भोगने की भी एक मर्यादा होती है। मनुष्य भोग भोगकर कितने भोगेगा? कब तक भोगता रहेगा? उसकी भी एक निश्चित मर्यादा है। काम-भोगों का उपभोग करके मनुष्य थकता है। उसे विराम की अवश्यकता होती है। इस कारण ही काम-भोग मर्यादित है, जबकि अर्थ-पुरुषार्थ की कोई मर्यादा नहीं है। अमुक धन-राशि प्राप्त पर अर्थ की वासना तृप्त हो ही जायेगी, यह निश्चित नहीं है। आपको यदि कोई पूछे, "कितना धन प्राप्त होने पर आप सन्तुष्ट हो जायेंगे?" तो क्या इसका कोई निश्चित उत्तर है आपके पास? नहीं, दस हजार वाला व्यक्ति लखपति बनने का,
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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