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________________ RECOGESR SOSORRHOOr आप ही बताइये-इस सब का मेरे सुकोमल बालकों पर कैसा विपरीत प्रभाव होता होगा? उनके भविष्य के विषय में सोचकर में काँप उठती हूँ। मैं दिन में जो कुछ संस्कार उनमें डालती हूँ, उन सब पर पति के रात्रि के व्यवहार से पानी फिर जाता है। महाराजजी! इस धन-सम्पत्ति ने तो हमारे घर का सर्वनाश कर दिया है। गुरुदेव! हमें किसी भी प्रकार से बचाइये।" जिस धन से शान्ति प्राप्त न हो उसका क्या मूल्य? अपार धन-सम्पत्ति भी धनवान स्त्री का रूदन शान्त नहीं कर सकती, तो बताइये धनसम्पत्ति ने क्या दिया? केवल भोग अर्थात् वैभव का अम्बार लगा दिया, परन्तु इतने सारे भोग-वैभव एकत्रित होकर भी उन धनवानों को सुख प्रदान नहीं कर सके, सद्गुणों की सुगन्ध से जीवन को समृद्ध नहीं कर सके। ___ तो फिर धन से प्राप्त होने वाले भोग-सुखों के उन साधनों का मूल्य क्या? जो जीवन में सुख प्रदान न करें, सद्गुण उत्पन्न न करें, प्रसन्नता प्रदान न करें। शान्ति प्राप्त करने के लिये नीति' की अनिवार्यता - भोग-वैभव प्राप्त हुए फिर भी सुख एवं शान्ति प्राप्त करने के लिये, चित्त की प्रसन्नता एवं सद्गुणों की प्राप्ति हेतु क्या करना चाहिये? इसका उत्तर यही है कि धन को नीति से उपार्जन करो। जो मनुष्य धनोपार्जन में नीति पर चलेंगे वे जो धन उपार्जन करेंगे, उससे उन्हें भोग (वैभव) तो प्राप्त होंगे ही और साथ ही साथ नीति के धर्माचरण के कारण उन्हें शान्ति, स्वस्थता और प्रसन्नता भी प्राप्त होगी। ___ नीतिपूर्वक उपार्जित धन में सुख, शान्ति एवं स्वस्थता प्रदान करने की शक्ति है, परन्तु अन्य व्यक्तियों को भी जो नीतिवान का धन लेते हैं उन्हें भी स्वस्थता एवं शान्ति प्राप्त होती है। कभी कभी तो नीतिवान व्यक्ति का धन दसरों का भी जीवन परिवर्तित कर देता है। इसी प्रकार नीति हीन व्यक्ति का धन उसका सुख-शान्ति तो हरता ही है, परन्तु उसे स्वीकार करने वाले की भी सुखशान्ति नष्ट हो जाती है और कदाचित् उल्टे मार्ग पर भी ले जाता है। नीतियुक्त धन का अद्भुत प्रभाव मोहनपुर नगर के राजा मोहनसिंह का किला किसी प्रकार भी बन नहीं पा रहा था। तनिक निर्माण कार्य होते ही ढह जाता। राजा ने इसके लिये अत्यन्त विचार किया, परन्तु उसे कोई उपाय नहीं सूझा। अन्त में उसने मंत्रीश्वर को इसका कोई उपाय ढूँढने के लिये कहा। मंत्री अत्यन्त चतुर था। उसने अनुमान लगाया कि "इसका कारण इस क्षेत्र का अधिष्ठाता देव अतृप्त होना चाहिये। उसे तृप्त करने के लिये किसी नीतिवान् व्यापारी का धन किले की तह में गाड़ना चाहिये।'' उसने नगर के एक अत्यन्त नीतिवान् व्यापारी की दस स्वर्ण-मुद्राऐं लाकर किले के नीचे गाड़दीं।
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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