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________________ RSSCROSS1509090900 हमें यहाँ चिन्तन करना है। धन से सुख के साधन प्राप्त होते हैं, शान्ति नहीं - हम यह देख चुके हैं कि मार्गानुसारी आत्माओं की मोक्ष एवं धर्म के प्रति अभिरूचि होती है तो भी अर्थ एवं काम के प्रति भी उनकी अभिरूचि होती है। इतना ही नहीं वह अर्थ एवं काम को उपादेय (प्राप्त करने योग्य) मानता है, परन्तु फिर भी उसकी विचारधारा का यह भी शुभ अंश है कि अर्थ एवं काम की प्राप्ति में धर्म का नाश नहीं होना चाहिये। संसारी जीव को योग-सुख प्राप्त करने पड़ते हैं यह बात समझ में आती है। योग सुखों को ही काम कहते हैं। इस कारण ही काम पुरुषार्थ का अर्थ हम काम भोग लगाते हैं और काम-भोग तथा भोग-सुख दोनों एक ही हैं। इन काम-भोगों (भोग-सुखों) को प्राप्त करने के लिये अर्थ अर्थात् धन की आवश्यकता अनिवार्य है। संसारी मनुष्यों को भोग-सुख प्राप्त करने के लिये भोग के साधनों की आवश्यकता होती है और भोग के साधन अर्थ (धन) के बिना प्राप्त होते ही नहीं, यह सर्वथा सत्य है। परन्तु हमें नहीं मान लेना है कि धन से प्राप्त भोग-सुख के साधन जीव को निश्चित सुख प्रदान कर सकते हैं। धन से तो भोग-सुख के साधन ही प्राप्त होते हैं, परन्तु यह विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इससे सुख एवं शान्ति अवश्य प्राप्त होगी ही। संसार में ऐसे लाखों मानव है कि जो अपार समृद्धि होने पर भी हृदय से सुखी नहीं हैं। धनवान-स्त्री का करुण क्रन्दन बम्बई के वालकेश्वर स्थित तीस लाख रूपयों के मूल्य के एक फ्लैट की निवासी एक धनवान परिवार की महिला एक मुनिराज के समीप आकर बिलख-बिलख कर रोने लगी। मुनिराज ने उसे पूछा-"बहन! तुम और यह क्रंदन? क्यों? किसलिये? मुझे समझ में नहीं आ रहा।" तब उस महिला ने कहा, "पूज्य श्री मेरे समान दुःखी महिला संसार में कोई नहीं होगी।'' मुनिराज ने पूछा, "बहन तुम्हें क्या कमी है? क्या कष्ट है? तुम्हारे पास तो करोड़ों की सम्पत्ति है, फिर भी तुम इस प्रकार रोती क्यों हो?" इस पर उस महिला ने कहा, "मुनिराज! मेरा दुःख धन से सम्बन्धित नहीं है। धन तो मेरे पास अपार है, सुन्दर सुख-सुविधाओं वाला फ्लैट, फर्स्ट क्लास तीन-तीन मर्सीडीज कार हैं, नौकर-चाकर, सन्तान सब कुछ हैं, फिर भी मैं अत्यन्त दुःखी हूँ।" ___ वह आगे बोली, "धन ही मेरे दुःख का मूल है। मेरे पति के पास अपार धन होने से ही वे रात को क्लबों में जाकर पर-स्त्रियों के साथ नृत्य करते हैं और मदिरा का पान करके रात्रि में डेढ-दो बजे घर आते हैं, बहुत बकवास करते हैं, कभी कभी तो नशे में चूर होकर वे मुझे बुरी तरह पीटते हैं। मेरे पुत्र ये सब दृश्य देख रहे हों तो भी वे स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रख पाते। पूज्य महाराजजी! अब 86oRec 1690909000
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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