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________________ xx 20060 1 505050... और सचमुच किले का निर्माण पूर्ण हो गया, किला बन कर तैयार हो गया। जब मंत्री ने राजा को इस तथ्य से भगवत कराया तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि नीति के धन का इतना अद्भुत प्रभाव हो सकता है। मंत्री ने राजा को विश्वस्त करने का निर्णय किया। वह दूसरे दिन उसी नीतिवान् व्यापारी और दस स्वर्ण मुद्राएं ले आया और उसने वे एक मछुए को दे दीं। मंत्री ने राजा को कोषागार की दस स्वर्ण मुद्राएं एक संन्यासी को दीं। जब मछुए को वे स्वर्ण मुद्राऐं दी गईं तब वह मछलियाँ पकड़कर उन्हें अपने घर लेजा रहा था। नीति की दस स्वर्ण-मुद्राओं के प्रभाव से मछुए का हृदय परिवर्तन हो गया। उसे अपने हिंसक पापी जीवन के प्रति घृणा हो गई और उसने संन्यास ग्रहण कर लिया। राज्य - कोष की दस स्वर्ण मुद्राऐं जिस संन्यासी को दी गईं थी, उस संन्यासी को अत्यन्त पश्चाताप होने लगा - "अरे! यह मैंने क्या किया? जीवन के अमूल्य वर्षों को भोग-विलास में व्यतीत करने के बदले मैंने उन वर्षों को साधु-जीवन के तप त्याग में बर्बाद कर दिये, परन्तु कोई बात नहीं। अब भी कोई विलम्ब नहीं हुआ। जितने भोगों का आनन्द ले सकूँ उतने भोगों का मैं इस जीवन में आनन्द ले लूँ।” यह सोच कर उस संन्यासी ने संन्यास त्याग दिया और उस मछुए का जाल लेकर वह मछुआ हो गया। नीति से अर्जित स्वर्ण-मुद्राओं ने मछुए को साधु बना दिया । अनीति की राज्य-कोष की स्वर्ण मुद्राओं ने संन्यासी को मछुआ बना दिया। राजा ने जब इस प्रकार दो जीवों के जीवन परिवर्तन की बात सुनी तब उसने यह सत्य स्वीकार किया कि "नीति का धन जीवन सुधार देता है और नीति का धन जीवन नष्ट कर देता है ... । ...I' सदा नीति पर चलने वाले मनुष्य के घर में भी यदि जाने-अनजाने अनीति का धन आ जाये तो उसके जीवन की शान्ति एवं स्वस्थता भी नष्ट हो जाती है। पुनिया श्रावक की नीतिपरकता चौबीसवे तीर्थपति श्रमण भगवान महावीरस्वामी ने जिसके सामायिक धर्म की समवसरण प्रशंसा की थी, उसी पूनिया श्रावक की यह बात है। राजगृही नगरी में एक सर्व श्रेष्ठ श्रावक था । जो अत्यन्त दीनता में भी सदा मस्त रहता था। धन-हीन वह मन का महान् धनी था। करोड़ों स्वर्णमुद्राओं के स्वामी के पास भी जैसी सामायिक की साधना न हो ऐसी सामायिक की साधना पुनिया की थी। ৩e coce 18 JAJAJAJA Jasan
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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