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________________ रूप में आदर पाने वाले व्यक्ति भी परस्त्रीगमन एवं वेश्या-गमन सम्बन्धी पापों में फंसते दृष्टिगोचर होते हैं तब इन पापों की भयानकता ज्ञात हुए बिना नहीं रहती। प्राय: धनी लोगों के जीवन में ही इन दोनों पापों की संभावना अधिक रहती है क्योंकि धन से ही, धन के लोभ से ही पर स्त्रियां एवं वेश्या अपनी देह का, अपने शील का विक्रय करने के लिये तैयार होती हैं। इस दृष्टि से यह कहना चाहिये कि यदि धन प्राप्त होकर अन्त में जीवन की इन पापों के द्वारा बर्बादी ही होनी हो तो आप भगवान से प्रार्थना करें कि "इससे तो हमें निर्धन का जीवन ही प्रदान करना। जिनके कारण इस लोक में मेरी निन्दा हो और मेरा परलोक भी भयानक हो जाये, ऐसे पाप मैं तो कम से कम मेरा जीवन नहीं पड़े।" 7.चोरी: चोरी का पाप भी सातवां व्यसन माना गया है। यह कदेव अत्यन्त भयंकर है। जिनकी एक बार चोरी करने की आदत पड़ जाती है, वह वृद्धावस्था तक भी छूटती नहीं है। आपको यह दृष्टांत स्मरण होगा। आसपास के पड़ोसियों के घर से छोटी-छोटी वस्तुओं की चोरी करने की टेव वाले उस बालक को उसकी माता ने इस कटुव से रोका नहीं, बल्कि उसकी उस प्रवृत्ति को उल्टा प्रोत्साहन दिया। परिणाम यह हुआ कि बड़ा होने पर वह बालक एक कुख्यात चोर हो गया। लाखों रूपयों की चोरी के अपराध में वह पकड़ा गया। अन्त में उसे फांसी का दण्ड सुनाया गया। फांसी पर चढाने से पूर्व उसे पूछा गया "तुम्हारी अन्तिम इच्छा क्या है ?" उसने कहा " मैं एक बार अपनी माता को मिलना चाहता हूँ।" उसकी माता को वहाँ बुलवाया गया। माता-पुत्र के अन्तिम मिलने के समय उसने माता का नाक काट खाया। माँचीत्कार करती हुई गिर पड़ी। न्यायधीश ने उसका पूछा "अपनी माता का नाक काट खाने का यह दुष्कृत तुने क्यों किया ?" उस चोर ने उत्तर दिया "यह मेरी माता ही मेरी मृत्यु का कारण है। बाल्यकाल में मेरी चोरी करने की आदत को रोकने के बदले इसने प्रोत्साहन दिया, जिसके कारण मैं यहां चोर बना और आज फाँसी पर चढ रहा हूँ। यदि इस मेरी माँ ने बचपन में मेरी वह कुटेव सुधारी होती तो आज इस प्रकार मेरी करूण मृत्यु नहीं होती।" कितनी सत्य बात हैं यह ? बालकों के बचपन के कुसंस्कारों को सुधारने का यदि मातापिता के द्वारा प्रयत्न नहीं किया जाये तो उसका परिणाम कितना भयंकर हो सकता है ? चोरी छोटी हो अथवा बड़ी, आखिर वह चोरी ही है और इस कारण वह त्याज्य है। छोटी भी चोरी करने के कुसंस्कार तो सचमुच खतरनाक ही हैं। अदत्त अर्थात् उसके स्वामी द्वारा नहीं दी गई वस्तु को ग्रहण करना चोरी है। इस प्रकार की चोरी का जीवन में से सर्वथा त्याग करना चाहिये। ___ व्यापार, धंधे में भी आज सरकारी कुत्सित रीति-नीतियों के कारण मनुष्य को कर-चोरी आदि का पाप करना पड़ता है। वह भी है तो चोरी ही और उसका भी त्याग करना चाहिये। फिर भी जीवन में से उस कर-चोरी का पाप नहीं छूटे तो भी उसके अतिरिक्त अन्य प्रकार की चोरी के
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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