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________________ R RCeresc09OSear एक प्रसंग प्रस्तुत हैं : एक युवक जुएं के एक अड्डे के समीप होकर नित्य निकलता। अनेक बार जूआ खेलने की उसकी इच्छा होती, परन्तु कुलीनता एवं लज्जा के कारण जुआ खेलता नहीं था। एक दिन अन्य जुआरियों ने उसे खेलने के लिये अत्यन्त आग्रह किया। उसका मन लालायित हो उठा। उसने सोचा "एक दिन खेलने में क्या हो जायेगा।' और लालायित होकर वह खेलने बैठ गया। उन मिथ्या मित्रों ने उसके पीने के लिये मदिरा मंगवाई, परन्तु उसने वह नहीं पी और जुआ खेलना प्रारम्भ किया। केवल पन्द्रह मिनट में ही उसने दो हजार रूपय अर्जित कर लिये। उन मित्रों ने जूआ खेलना बंद किया। दो हजार रूपये लेकर वह अड्डे से बाहर निकला। वह अत्यन्त प्रसन्न था। वह मन ही मन सोच रहा था "इतने सारे रुपये। पूरा महिना नौकरी करने पर भी नहीं मिल सकते उतने रूपये मुझे केवल पन्द्रह मिनट में ही प्राप्त हो गये।" उसने पुनः सोचा "अब यहाँ नित्य आकर जुआ खेलूँगा।'' वास्तव में यह उसकी सच्ची जीत नहीं थी, परन्तु उन बदमाश मित्रों ने ज्ञान-बुझकर उसे जिताया था क्योंकि वे कुमित्र उसमें जुआ खेलने की लत डालना चाहते थे, ताकि वह नित्य खेलने लग जाये। उस भोले युवक को यह सब पता नहीं थज्ञा दूसरे दिने से वह युवक नित्य जूए के अड्डे पर आने लगा। प्रारंभ में तो चार-पाँच दिन तक वह कमाता गया, परन्तु तत्पश्चात् धीरे-धीरे उसकी पराजय प्रारम्भ हो गई। अब वह पाँचसात दिन निरन्तर हारता तो एक दिन कुछ कमा लेता था। परन्तु वह यह एक दिन की जीत उसे पांचसात दिन अड्डे पर आने के लिए प्रेरित करती। ऐसा करते करते युवक को जूआ खेलने की लत लग गई। परिणाम भयंकर था। जूए के पाप से उस युवक का जीवन नष्ट हो गया। देर रात्रि तक जागृत रहना, जूआ खेलना, अत: मदिरा की बोतल भी प्रारम्भ हो गई। मदिरा-पान और धत-क्रीडा के लिये रूपये की तो आवश्यकता होती ही है। नित्य रूपये कहाँ से लाये ? अन्त में वह चोरी करने लगा। मदिरा, जूआ, चोरी और अन्त में परस्त्रीगमन आदि पाप भी उसके जीवन में प्रविष्ट हो गया उत्तम जीवन का स्वामी युवक बर्बादी की गहरी खाई में जा गिरा। ये समस्त पाप प्रारम्भ में तो प्रिय, मधुर एवं सुमधुर लगते हैं, परन्तु इनका परिणाम अत्यन्त भयानक होता है। अत: यदि आपका इनसे बचना हो तो प्रथम ही इनका आचरण करने से दूर हटना। जो व्यक्ति पतन के इस प्रारम्भिक पल को चूक गया वह तो मानो जी गया और जो इस प्रथम पल में ही बर्बाद हो गया, ललचा गया वह अपना भाव-प्राण खो ही बैठा समझो। 5. परस्त्रीगमन और 6. वेश्यागमन : ये दोनों पाप अत्यन्त घोर स्तर के हैं। युवावस्था की मौज में मतवाले बने युवक, वासना की बाढ के प्रवाह को नहीं रोक सकने वाले व्यक्ति इन दोनों पापों में फंस जाते हैं। यदि जीवन में कुलीनता और लज्जा जैसे तत्त्व न हो तो प्राय: इन दोनों पापों के प्रलोभनों से बचना अत्यन्त दुष्कर है। कभी-कभी महान् धर्मात्मा का प्रमाण पत्र लेकर घूमने वाले और महान् साधु-पुरुषों के भक्तों के GORGEOGGC152909009090
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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