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________________ 3333 À 505050505 परित्याग की प्रतिज्ञा अवश्य कर लेनी चाहिये। उस प्रकार की चोरी के परित्याग की प्रतिज्ञा अवश्य कर लेनी चाहिये। उस प्रकार की चोरी यदि आप नहीं करते हैं तो उसकी प्रतिज्ञा लेने से उसके त्याग का महान् लाभ प्राप्त होता है। ये सात व्यसन लोगों में निन्दनीय कार्य माने जाते हैं। इनका परित्याग अवश्य करना चाहिये। वर्तमानकाल में महापाप : इनके उपरान्त वर्तमान समय की दृष्टि से अन्य भी अनेक प्रकार के निन्द्य कार्य हैं। गर्भपात करना, तलाक लेना, सिनेमा तथा विडिया आदि देखना, क्लबों में जाकर अनार्यों की तरह परस्त्रियों के साथ नृत्य करना, उपकारी गुरुजनों की अवहेलना, तिरस्कार करना, विश्वासघात करना तथा अनीति करना - ये समस्त वर्तमान काल के निन्दनीय कार्य हैं। इन समस्त पापों का त्याग करना चाहिये। जिन्होंने भारतीय संस्कृति के पालन से दीप्त जीवन में भारी सुरंग लगाई है, प्रजा को चरित्रहीन एवं नपुंसक बना दी है ऐसे पाश्चात्य संस्कृति के अनुकरण स्वरूप इन महा पापों जीवन को बचाना ही चाहिये। वर्तमान जीवन में सुख प्राप्त करने के लिये जिन-जिन ने इन नूतन आधुनिक पापों का आश्रय लिया है उन्होंने अपनी आत्मा का तो घोर अहित किया ही है, साथ ही साथ भारतीय संस्कृति कभी धज्जियाँ उड़ाने में सहयोग प्रदान करके अनेक जीवों को उल्टी शिक्षा देकर जगत का भी घोर अहित किया है। मौज-शौक ही रक्षार्थ गर्भपात : - एक दम्पति की बात मुझे याद है जिसने विवाह के पश्चात् थोड़े ही समय में अपनी पत्नी का गर्भपात कराया था। दूसरी बार गर्भ ठहरने पर दूसरी बार भी गर्भपात कराया गया। एक महात्मा के पास अपने पाप का प्रायश्चित करते समय उस महात्मा ने युवक को पूछा “दो बार गर्भपात कराने का कारण क्या?” युवक ने उत्तर दिया “उस समय हमारा ताजा ही विवाह हुआ था। प्रारम्भ में दोचार वर्ष तो बाहर घूमना-फिरना, मौज-शौक करना होतो बच्चे अन्तराय भूत बनते हैं। कौन इस झंझट में पड़े ? अत: हमने गर्भपात करा लिया था।” हाय ? कैसी करुणता । जिस मिट्टी के कण-कण में जीवों को बचाने की, दया की सद्भावनाऐं विद्यमान हैं, उस धरती का एक युवक अपने मौज-शौक के लिये, वासना की तृप्ति के लिये अपनी पत्नी के उदर में स्थित भ्रूण की हत्या कराता है ? यह एक व्यक्ति की घटना नहीं है। ऐसे तो लाखों युवक-युवतियाँ इस भारत की धरती पर आज उभर आई हैं। इसे आधुनिक भारत का दुर्भाग्य माने अथवा अन्य कुछ ? इतना तो ठीक ही है कि उस युवक की तत्पश्चात् भी सद्गुरू का संयोग होने पर अपने उस पाप का प्रायश्चित करने की इच्छा हुई। इस दृष्टि से तो वह युवक शत-शत अभिनन्दन का पात्र है। Geo 303194 20999999990
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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