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________________ esece à 995252525 मार्गानुरागी आत्मा का दसवाँ गुण है - उपद्रव ग्रस्त स्थान का त्याग। चाहे जैसे स्थान पर नहीं रहना, उचित स्थान पर ही आवास बनाना। यद्यपि 'उचित आवास' नामक गुण में ही इस सम्बन्ध में विशेष विचार किया जा चुका है फिर भी 'आवास' और स्थान को अलग करके उपद्रवग्रस्त स्थान का त्याग करने का शास्त्रीय विधान उस विषयक महत्व का प्रतिपादन करता है। निम्न उपद्रवग्रस्त स्थानों का त्याग करना चाहिये : 1) जहाँ भूत-प्रेत आदि का वास हो उस स्थान पर नहीं रहना चाहिये । 2) शेर-भेडिया, अथवा साँप - बिच्छु आदि का भय हो उस स्थान का परित्याग करना चाहिये। 3) जहाँ चोर-डाकुओ आदि का विशेष भय रहता हो वह स्थान भी अयोग्य (अनुचित) कहलाता है। 4) जहाँ अपने अथवा पराये राजा की ओर से भय रहता हो उस स्थान का भी परित्याग करना चाहिये। 5) महामारी, मरकी तथा दुष्काल आदि का उपद्रव हो उस स्थान का भी परित्याग करना चाहिये। 6) जहाँ बार-बार उपद्रव तथा दंगे आदि होते हो वहाँ नहीं रहना चाहिये। ऐसे स्थान (देश) का परित्याग कर देना चाहिये । जिस प्रकार वर्तमान काल में पंजाब जैसे देश में बार-बार एवं निरन्तर हत्या हो रही हैं दिन-दहाड़े हिन्दुओं को गोलियों से भून दिया जाता है, किसी के प्राणों एवं सम्पत्ति की सुरक्षा का प्रबन्ध नहीं है। ऐसे स्थान पर समझदार मनुष्य को कदापि नहीं रहना चाहिये । वर्षों से वहाँ बसे हुए मनुष्यों के लिये यकायक स्थल बदलना कठिन प्रतीत होता हो तो भी उन्हें ऐसे देश का त्याग करने की ओर सतत लक्ष्य रखना चाहिये। ऐसे देश में व्यापार-व्यवस्था आदि की दृष्टि से ठीक जमावट हो गई हो तो कुछ मनुष्यों की वह देश छोड़ने की इच्छा नहीं होती, परन्तु यह ध्यान रखना चाहिये कि दुष्ट मनुष्य कब आपकी दुकान अथवा पेढी को नष्ट कर देंगे उसका कोई भरोसा नहीं है और उस समय दूकान-पेढी तो आपके हाथ से जायेगी ही, परन्तु आपके अमूल्य प्राण भी जाने का समय आ सकता है। अतः ऐसे स्थानों से तो 'जीवित नर भद्रा पामे' यह सोचकर वहाँ से तुरन्त निकल जाना और अन्य शान्त एवं स्वस्थ प्रदेश में निवास करना हितकर माना जाता है। 7) जहाँ बार-बार दुष्काल (अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि) पड़ते हो उन स्थानों का त्याग करना चाहिये। 8) जहाँ जुआरी मनुष्यों का अड्डा हो, मदिरा के गोदाम आदि हो उन स्थानों पर नहीं रहना चाहिये। इतना ही नहीं उस स्थान में होकर यथा संभव गुजरना भी नहीं चाहिये क्योंकि दुष्ट मनुष्यों का दूषित प्रभाव हमारे मन को और संतानों के मन को प्रभावित कर सकता है। 9) जहाँ सद्गुरूओं तथा स्वधर्मियों का संसर्ग प्राप्त होने की सम्भावना न हो ऐसे स्थान पर भी नहीं रहना चाहिये। ee 142 000000 xo
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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