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________________ Recen99900 10) जिस स्थान पर धर्माराधना में और अर्थ एवं काम पुरुषार्थ की धर्म द्वारा नियंत्रित प्रवृत्ति में बाधा उत्पन्न हो, विघ्न उत्पन्न हो ऐसा स्थान अयोग्य एवं उपद्रव्यग्रस्त कहा जाता है। ऐसे स्थान का परित्याग करें। ___ उपर्युक्त कारणों वाले स्थानों का त्याग करना विवेकी मनुष्य का कर्तव्य है। ऊपर जो बिन्दु बताये गये हैं उनमें से अनेक बिन्द मत्स अथवा धन-नाश न हो उस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर बताये गये हैं, तो प्रश्न उठता है कि मृत्यु सेइतना भयभीत होने की क्या आवश्यकता है ? क्या मृत्यु से भयभीत होने की बात कायरता नहीं हैं ? बात ठीक है। उपलक दृष्टि से सोचते पर लगता है कि मृत्यु से क्यों डरना? उसके लिये सांप अथवा चोर आदि के भययुक्त स्थान से क्यों भागें ? परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर यह मिथ्या सिद्ध होगा। उपद्रवग्रस्त स्थान पर रहने में अथवा खड़ा रहने में साहस अथवा वीरता नहीं है, परन्तु नादानी है, नासमझी है, अविवेक है। ___ एक बात अच्छी तरह ध्यान में रखनी चाहिये कि हमें प्राप्त मानव-भव सामान्य नहीं है, अत्यन्त मूल्यवान् है। इसमें धर्माराधना के अत्यन्त उत्तम अवसरों का लाभ उठाना चाहिये और इस प्रकार हमें मुक्ति-पथ पर तीव्र वेग से अग्रसर होना है। अत: हमारा एक भी कदम ऐसा नहीं होना चाहिये कि जो हमारी धर्म-साधना को हानि पहुँचाने वाला हो। प्राप्त मानव-भव एवं मानव-देह का मूल्य करोड़ों, अरबों रूपयों से भी अधिक है। अत: इसे किसी सॉप अथवा बिच्छु के सामान्य डंक से समाप्त नहीं होने दिया जा सकता, इसे किसी चोर-डाकू के धन-लोभ के पाप से नष्ट नहीं होने दिया जा सकता, इसे किसी साम्प्रदायिक दंगे में एस.आर.पी. के सिपाही की गोली का अर्थहीन शिकार होने नहीं दिया जा सकता और इसे पंजाब के किसी आतंकवादी की छुरी से नष्ट नहीं होने दिया जा सकता। जिस प्रकार मृत्यु से भयतीत नहीं होना वीरता है, उसी प्रकार से किसी भी तरह, किसी के भी हाथों, किसी भी कारण से निरर्थक मरना पड़े उस परिस्थिति में जानबुझकर स्वयं को डालना निरी मूर्खता है, निरी नादानी है। हाँ, यदि धर्म-शासन की रक्षार्थ, किसी जिनालय अथवा जिन-शासन पर आई आपत्ति से उसकी रक्षार्थ मरना पड़े और मृत्यु का हंसते-हंसते स्वागत किया जाये तो वह अवश्यमेव बलिदान है। शूरवीरता है। परन्तु हमारी अज्ञानी भूल के कारण पूर्णत: तुच्छ कारणों के लिये मानवभव अकारथ गंवाना कोई बुद्धिमानी नहीं हैं। हीरों के पैकेट लेकर असावधानी से घूमते हुए चोर-डाकू की दृष्टि पड़ने पर युवावस्था में उन दुष्टों की गोली का शिकार होना पड़े तो क्या यह वीरता है ? कोई बताइये तो सही। जैन-शासन के सिद्धान्तों में कहीं भी तुरन्त मरजाने की बात नहीं है, आत्म-हत्या को किसी भी तरह श्रेष्ठ नहीं
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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