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________________ ३५२ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ वर्षों से प्रतिवर्ष १२-१४ जितनी धर्मशालाओं में विविध संघपतिओं के द्वारा किया जाता है और हजारों भाग्यशाली ९९ यात्रा की आराधना द्वारा अपनी आत्मा को लघुकर्मी बनाते हैं । लेकिन शेजय महातीर्थ की एक टेक के रूप में माने गये श्री गिरनारजी महातीर्थ की ९९ यात्रा का सामूहिक आयोजन सैंकडों वर्षों के इतिहास में सर्वप्रथमबार वि. सं. २०५१ में अचलगच्छाधिपि प. पू. आ. भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य प्रशिष्य पू. गणिवर्य श्री महोदयसागरजी म.सा. आदि ठाणा ३ की निश्रामें सा. श्री निर्मलगुणाश्रीजी एवं सा. श्रीज्योतिप्रभाश्रीजी की प्रेरणा से किया गया था । गिरनारजी की तलहटी में एक ही जैन धर्मशाला और वह भी जर्जरित स्थिति में होने से ५० जितनी मर्यादित संख्या में ही यह आयोजन ५ संघपतिओं के सहयोग से आयोजित हुआ था । कुल ९० दिनों के इस आयोजनमें ७८ सालके वयोवृद्ध माजी भी वर्षीतप करे हुए शामिल हुए थे । ४० जितने यात्रिकोंने छ? तप के साथ दो दिनों में ७ यात्राएँ की थीं । उनमें से अधिकांश यात्रिकों ने चौविहार छठ्ठ तप किया था । कुछ यात्रिकोंने अठ्ठम तप के साथ ११ या ९ यात्राएँ की थीं । कुछ यात्रिकोंने १ उपवास के साथ एक दिनमें ४ यात्राएँ की थीं। वर्षीतप, एकांतरित ५०० आयंबिल और वर्धमान आयंबिल तप की ओली के साथ उत्साहपूर्वक ९९ यात्राएँ की थी। - ३ यात्रिकोंने ९० दिनोंमें दो बार ९९ यात्राएँ की थीं । एकबार - ९९ यात्रा पूर्ण करने के बाद शंखेश्वरजी तीर्थ में सामूहिक अठ्ठम तप में शामिल होकर पुनः दूसरी बार ९९ यात्राएँ की थीं । ३ आराधकों ने ९० दिन तक संपूर्ण मौन के साथ ९९ यात्राएँ की थीं । कुछ श्रावकोंने ९९ यात्रा के दौरान केशलोच भी करवाया था। गिरनारजी के प्रत्येक जिनालय एवं प्रत्येक देहरी के समक्ष सामूहिक चैत्यवंदन हो जाय इस रह हररोज नेमिनाथ जिनालय एवं अन्य
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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