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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ३५१ विजातीयता के कारण किसी प्रकारके अनर्थ होने की संभावना नहीं रहती थी । ___ कोई भी पुरुष स्वयंसेवक महिलाओं के विभागमें नहीं जा सकते थे और कोई भी महिला स्वयंसेविका पुरुष विभागमें नहीं जा सकती थी। स्नात्रपूजा और अष्ट्प्रकारी पूजा के लिए भाईओं और बहनों के लिए अलग अलग दो स्थानों पर व्यवस्था रखने में आयी थी । इसके लिए प्रभुजी के दो रथों की व्यवस्था की गयी थी । विहार के दौरान भी प्रथम साधु भगवंत, उनके बाद श्रावक, फिर साध्वीजी और उनके बाद श्राविकाएँ यह क्रम विहार के प्रारंभ से लेकर अंत तक निश्चित रूपसे रहता था । जिससे रास्ते में भी कोई विजातीय के साथ बातचीत नहीं कर सकते थे । सब के अंत में चौकीदार एवं २ - ३ प्रौढ श्रावक रक्षण के लिए रहते थे । चतुर्विध श्री संघ के प्रायः सभी यात्रिक गन्तव्य गाँव के पास पहुँच जाते उसके बाद ही स्वागतयात्रा का प्रारंभ होता था । संघ में बेन्डपार्टी को भी साथ में रखी गयी थी जो गुजरात से बुलायी गयी थी और पिरोसने की जिम्मेदारी उन्हीं को सौंपी गयी थी । पूना के किसी भी स्वयंसेवकको यह कार्य नहीं सौंपा गया था । इस प्रकार की कई विशेषताओं के कारण यह संघ अत्यंत शासन प्रभावक हुआ था । आज प्रतिवर्ष कई छ'री' पालक यात्रा संघ, ९९यात्रा संघ, उपधान इत्यादिके सामूहिक आयोजन होते है। उनमें भी यदि उपरोक्त प्रकार की मर्यादाओं का व्यवस्थित रू पसे पालन करवाने के लिए पूज्यवर्ग, संघपति एवं कन्वीनर जाग्रत रहें तो संभवित अनेक अनर्थ एवं आशातनाओं से बचा जा सकता है और सच्चे अर्थमें वे अनुष्ठान शासन और धर्म की प्रभावना करानेवाले बन सकेंगे । (५) शेजय महातीर्थ की ९९ यात्रा का आयोजन पिछले कुछ
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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