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________________ २९६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ भक्त के शरीर में देवी ने प्रवेश किया तब उन लोगोंने देवी को पूछा कि ' हे माताजी ! हमने सुमतिभाई सेठजी को वचन दिया है उसके मुताबिक बकरों की बलि बंध करें या चालु रखें ? देवीने जवाब दिया कि -'सेठजी को दिये हुए वचन का पालन करो, क्योंकि हिंसा दुःख की खान है उसको बंद करो, उससे तुम्हारे गाँव का कल्याण होगा' । इससे उन लोगों का भय हमेशा के लिए दूर हो गया । वे नाचते हुए अपने गाँवमें वापस लौटे और सभी लोंगों को देवी के प्रत्युत्तर की बात बता बादमें दि. २६ - १२ - ९२ का दिन आया तब यात्रा का प्रारंभ हुआ। सारे गाँव के लोग वार्जित्रों के नाद के साथ साष्टांग दंडवत् प्रणाम करते हुए अम्बामाँ के मंदिर में पहुँचे और अपने अपने घर से आये हुए श्रीफल और नैवेद्य चढाकर उत्सव मनाया । जिस दिन खून की नदी बहती थी उसी दिन गाँव लोगों के सहयोग से मैत्री के पवित्र वातावरण का सृजन हुआ । अम्बाजी के मंदिर को रोशनी से सजाया गया था । पत्रकार वहाँ आ पहुँचे । गाँव के लोगों · का इन्टरव्यू लिया । वर्तमानपत्रों में यह बात प्रकाशित हुई । चारों ओर से सुमितभाई के उपर धन्यवाद की वृष्टि हुई ।. हिंसा बंद होने से सुमतिभाई को अत्यंत आनंद हुआ । उन्होंने लिंगनूर गाँव के प्रत्येक व्यक्ति को १ - १ मोतीचूर लड्डु की प्रभावना घरघरमें स्वयं जाकर अपने हाथों से दी । लोग बहुत प्रसन्न हुए । अहिंसामय जैन धर्म का जय जयकार हुआ। २ - ३ घरों में गुप्त रूप से उस दिन माँसाहार होने की खबर मिलते ही गाँव के लोगोंने मिटींग बुलायी और माँसाहार करनेवालों को ५०० रूपये का दंड दिया और क्षमायाचना करवायी । तब से वहाँ उस दिन तो कोई भी माँसाहार नहीं करते । अम्बाजी के मंदिर के जीर्णोद्धार का खर्च सुमतिभाई ने दिया । इतना ही नहीं किन्तु प्रति वर्ष यात्रा के दिन वे स्वयं सभी को नैवेद्य अपनी और से देते थे मगर लोगों का उत्साह बढाने के लिए कहते थे
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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