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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ २९५ उन्होंने आई हृदय से प्रार्थना की कि 'हे देवाधिदेव ! जीवदया के महान शुभ कार्य के लिए मैं जा रहा हूँ, आप मुझे शक्ति प्रदान करें। उसके बाद वे लिंगनूर गये और वहाँ के अग्रणी लोगों को इकठ्ठा करके उनके समक्ष अपने हदय की भावना अभिव्यक्त करते हुए कहा कि 'आप लोग इस हत्या को बंद करें तो अच्छा होगा क्योंकि यह अंधश्रद्धा है। इससे तो आप दुःखी हो रहे हैं । यह धर्म नहीं किन्तु अधर्म है। इससे तो आप लोग भवोभव बरबाद हो जायेंगे' इत्यादि । लिंगनूर गाँव के अग्रणी लोग सुमतिभाई की प्रतिष्ठा एवं धार्मिकता से प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा कि 'सेठजी ! हम आज ही रात को ढंढेरा पीटकर गाँव के लोगों को समझाने की कोशिश करेंगे ।' दूसरे दिन दि. १२-१-९२ के दिन सुबह ८ बजे सारे गाँव के लोगों की मिटींग अंबिका देवी के मंदिर के प्रांगण में हुई । उस मिटींग में सुमतिभाई भी उपस्थित रहे थे। उन्होंने लोगों को जीवहिंसा के भयंकर दुष्परिणामों की बात प्रेमसे समझायी। ...और सचमुच उस दिन जैसे चमत्कार ही हुआ हो वैसे कई वर्षों से चली आयी बलि प्रथा को हमेशा के लिए बंद करने का निर्णय सर्वानुमति से लिया गया । किसीने जरा भी विरोध नहीं किया ॥ .. सुमतिभाई भी खुशी से झूम उठे । उन्होंने लोगों को कहा कि, 'इस साल अम्बा माता की यात्रा ठाठ से मनाओ, जो भी खर्च होगा वह मैं दूंगा। लेकिन एक बात का खयाल रखें कि एक भी पशु-पंछी की हिंसा नहीं होनी चाहिए' । इस उद्घोषणा से सारे गाँव में आनंदोल्लास का वातावरण फैल गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद गाँव के कुछ अग्रणी लोगों को ऐसा भय लगा कि बकरों का बलि नहीं देने से देवी कोपायमान होगी तो ? ___ इस द्विधा का निवारण करने के लिए गाँव के १५० लोग कर्णाटक में आये हुए यल्लामा देवी के मंदिर में गये । भारतभरमें से प्रति वर्ष हजारों लाखों लोग वहाँ जाते हैं। महा सुदि १५ के दिन वहाँ विराट मेला लगता है । उस मेले में लिंगनूर के १५० लोग गये थे । वहाँ जब
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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