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________________ २८१ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ जिस तरह श्री व्रजस्वामीने जन्म से लेकर दीक्षा के मनोरथ एवं सफल प्रयत्न किये उसी तरह ये बच्चे भी अमुक अपेक्षा से कितने पुण्यशाली हैं कि जन्म से ही रात्रिभोजन के महापाप से बच गये हैं ! भूरिशः हार्दिक अनुमोदना सह उनके माँ-बाप को भी बहुत बहुत धन्यवाद । 8888 8888888888804 ४ सालकी उम्र से नवपदजी की आयंबिल १२७ ओली की आराधना करते हुए भाई बहन कुमारपाल और मयणा एक श्राविका को कुमारिका अवस्था में दीक्षा ग्रहण करने की प्रबल भावना थी, मगर कर्म संयोग से उनको शादी करनी पड़ी । विवाह के बाद भी उनके हृदय में धर्म की भावना वैसी ही बरकरार रही । ___ अपने दो बच्चे एक साल की उम्र के थे तभी से दोनों को रात्रिभोजन बंद करवाया और उबाला हुआ अचित्त पानी पीने का प्रारंभ करवाया । . उनकी छोटी सी बच्ची मयणा को अगर कोई पूछेगा कि 'रातको खाना चाहिए ?' तो वह तुरंत जवाब देगी कि नहीं खाना चाहिए, क्यों कि जो रात को खाते हैं उसको नरक में मार खाना पड़ता है।" कभी शाम को खाने का रह गया तो और अंधेरा हो जाता है उसके बाद उसको कितना भी प्रलोभन देने पर वह रात को नहीं खाएगी। उसको घडी देखने नहीं आती फिर भी इतनी बात तो उस के दिल और दिमाग में एकदम दृढ हो गयी है कि, अंधेरा हो जाने के बाद नहीं खाया जाता । कभी पड़ौसियों के घरमें रात को खेलने के लिए गयी हो और पड़ौसी उसे चोकलेट पीपरमेन्ट आदि खाने के लिए बहुत आग्रह करें तो भी वह नहीं खाती । यह बालिका अभी ७ साल की है और उसका भाई कुमारपाल ९ साल का है। जन्म के बाद ४१ वें दिन से दोनों ने जिनपूजा का प्रारंभ किया है, उसके बाद शायद ही कोई दिन पूजा बिना खाली गया
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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