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________________ २८० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ है। मुंबई मलाड़ में भी एक ऐसा बालक है। . - इन बच्चों ने पूर्व जन्म में कैसा पुण्य किया होगा कि नरक के प्रथम द्वार समान रात्रिभोजन के पाप से जन्म से ही बच गये । इस काल में करोड़पति और अरबपति बहुत मिलेंगे किन्तु आजन्म चौविहार करनेवाले पुण्यसम्राट कितने होंगे ? - दूसरे भी ऐसे कुछ बच्चे हैं । लेकिन कुल मिलाकर पूरे विश्वमें ऐसे कितने बालक होंगे ? शायद २५-३० होंगे ! ऐसे महापुण्यशालिओं का दर्शन करने की भावना होती है ? जिस तरह गिनेश बुक में विविध विषयों में विश्व विक्रम करनेवालों के नाम दर्ज होते हैं उसी तरह इन बच्चों के नाम गिनेश बुक में तो नहीं किन्तु धर्मराजा की किताबमें जरूर दर्ज हो गये होंगे। हम सभी जन्म के समय में तो अज्ञानी थे और पुण्य भी शायद उतना उच्च कोटिका नहीं था, इसलिए उपरोक्त प्रकार के महाधर्मा माँबाप नहीं मिले, फिर भी आप पुण्यशाली तो जरूर हैं जिससे उत्तम कुलमें जन्म मिला है और आप पढे लिखे सुज्ञ भी हैं, तो हे भाग्यशाली पाठकों! आप आज से इतना दृढ निश्चय जरूर करें कि अभी से लेकर आजीवन रात्रिभोजन तो नहीं ही करेंगे। .. मुंबई आदि में ऐसे अनेक धर्मात्मा हैं कि जो घर से टिफिन मंगाकर या अपने साथ में खाना ले जाकर या अन्य कोई भी व्यवस्था करके चौविहार करते हैं । कुछ ऐसे भी धर्मप्रेमी सज्जन हैं जो अपने सेठ से विज्ञप्ति करके स्वेच्छा से अपना वेतन कुछ कम लेकर भी सायंकाल घर जाकर चौविहार करते हैं । आप अगर चाहें तो आसानी से इस महापाप से बच सकते हैं। _आज विश्वमें हजारों लोग ऐसे साहसिक हैं कि जो बाल युवा या प्रौढ वयमें खेल-कूद, रेस, पर्वतारोहण, ध्रुवसंशोधन, अवकाशयात्रा, समुद्र तरण आदि विविध क्षेत्रोमें अपने जान की बाजी लगाकर जगत्प्रसिद्ध होते हैं, तो आप ऐसे छोटे से धर्मकार्य में भी पीछेहठ क्यों करते हैं ? अपने भावों को उन्नत बनाकर आत्महित साधे । संतों के आशीर्वाद आपके साथ हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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