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________________ २५८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ अपनी ७७ साल की उम्र में उन्होंने कुल मिलाकर केवल ५०० ख्मयों के ही कपड़े पहने हैं । जौहरी होते हुए भी कितनी अपूर्व सादगी !!! जवानी में जौहरी का व्यवसाय करते हुए उन्होंने आत्मा रूपी सच्चे हीरे को पहचान लिया और ज्ञानियों की दृष्टि से आध्यात्मिक जौहरी बन गये। वि. सं. २०१६ में उन्हों ने अपने परमोपकारी सा. श्री विचक्षणाश्रीजीकी निश्रामें जयपुर से मालपुरा का छ 'री' पालक पदयात्रा संघ निकाला था । सा. श्री विचक्षणाश्रीजी जयपुर से दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान कर रही थीं तब अमरचंदभाई ने एक विशिष्ट अभिग्रह लेकर अपनी गुरुभक्ति अभिव्यक्त की थी कि, 'जब तक सा. श्री विचक्षणाश्रीजी महाराज पुनः जयपुरमें नहीं पधारेंगे तब तक संपूर्ण मौनव्रत अंगीकार कर के साधना करूँगा' !... कैसी बेमिसाल गुरुभक्ति !... कैसा अनुपम साधना प्रेम !! केसी अद्भूत अंतर्मुखता !!... उपरोक्त अभिग्रह के बाद साध्वीजी १८ साल के पश्चात् जयपुरमें पधारे तब तक वे मौन ही रहे !!! साधना के द्वारा उनको अपनी आयुष्य की समाप्ति का संकेत भी मिल चुका था । तद्नुसार उन्होंने दि. १४-१-१९७६ से सागारिक अनशनका प्रारंभ कर दिया था । ३५ दिन के अनशन के दौरान इनकी साधना की स्थिति अपूर्व कोटिकी थी । दि. १७-२-१९७६ के दिन दोपहर को करीब ४ बजे उनका समाधिपूर्ण स्वर्गवास हुआ था । तब उनके घरमें एवं सा. श्री विचक्षणाश्रीजी जहाँ स्थित थे उस उपाश्रयमें भी केसर की वृष्टि हुई थी। ...स्वर्गवास से एक ही दिन पूर्व में उन्होंने मुनिवेष भी धारण कर लिया था। दक्षिण भारत से लौटने के बाद सा. श्रीविचक्षणाश्रीजीने अमरचंदभाई को पूछा था कि, 'आपके १८ साल के मौन की फलश्रुति क्या है।' तब उन्होंने अपना मौन खोलकर कहा कि, 'मेरी भावना थी कि मेरे अंतिम समयमें गुरु महाराज की उपस्थिति होनी चाहिए और मेरी वह भावना आज परिपूर्ण हो रही है उसका मुझे अपार आनंद है' इतना बोलकर वे पुनः मौन हो गये थे।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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