SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ २५७ लगातार १८ साल तक मौनवती, विशिष्ट आत्मसाधक सुश्रावक श्री अमरचंदजी नाहर खरतरगच्छमें सा. श्री विचक्षणाश्रीजी प्रखर व्याख्यात्री एवं अपूर्व समता की साधिका थीं । उनके • उपदेश से विशेष रूप से आत्म साधना में संलग्न हुए जयपुर (राजस्थान) के सुश्रावक श्री अमरचंदजी नाहर एक विशिष्ट आत्म साधक थे । वे हमेशा एकाशन करते थे । एकाशन में भी एक ही द्रव्य लेते थे। कई बार वे केवल दूध या छाछ का पानी या चोपड़ (आटा) की थूलि से ही एकाशन करते थे ! उनकी प्रेरणा से उनके परिवार के एवं अन्य भी कई लोगोंने सप्ताह में ३ या २ या १ दिन नमक त्याग (अस्वाद व्रत) का संकल्प किया है। जैन साधु की तरह वे स्नान नहीं करते थे । पाँव में जूते नहीं पहनते थे। तप-जप भक्ति-मौन-आध्यात्मिक स्वाध्याय-ध्यान-आत्म स्वरूप का निदिध्यासन इत्यादि में ही वे अपना अधिकांश समय व्यतीत करते थे, जिसके फल स्वरूप देह भिन्न चैतन्य स्वरूप की अनुभूति भी उनको हुई थी !... ___ एक विशिष्ट धर्मात्मा के रूपमें उनकी ऐसी सुंदर ख्याति थी कि जयपुर में किसीने भी मासक्षमण आदि बड़ी तपश्चर्या की हो तो उनका पारणा श्री अमरचंदभाई के हाथों से कराया जाता था और उस बड़े तपस्वी के वहाँ उबाला हुआ अभिमंत्रित अचित्त जल भी श्री अमरचंदभाई के घर से ही पहुँचाया जाता था । अमरचंदभाई ने एवं उनके परिवार के ४-५ सदस्यों ने भी २-२ मासक्षमण किये हुए हैं !... बहुरत्ना वसुंधरा - २-17
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy