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________________ २५० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ में एक इतिहास का सृजन किया । उसमें गुरुकृपा ने चार चाँद लगाये। कई शासन प्रभावक सत्कार्य हुए । उन सत्कार्यों की थोड़ी सी रूपरेखा अनुमोदना करने के लिए और प्रेरणा पाने के लिए यहाँ पर प्रस्तुत की जा रही है। सन १९७० में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समयमें, बंगलादेश से भारत में आये हुए लाखों बंगाली मुस्लिम शरणार्थीओं की धान्य, आहार, औषध-वस्त्र आदि द्वारा भव्य मानव सेवा की । . आंध्रप्रदेश में समुद्र में उत्पन्न हुए भयंकर प्राकृतिक प्रकोप से लाखों लोग अत्यंत मुसीबत में फंस गये थे, तब कुमारपालभाईने लाखों रूपयों का सद्व्यय कर के मानव सेवा के बड़े बड़े आयोजन कुशलतापूर्वक पार लगाये थे । सन १९७० से १९८५ तक राजस्थान के पिछड़े हुए पल्लीवाल (जिला सवाई माधोपुर, भरतपुर और अलवर) क्षेत्र में और गुजरात के बोडेली विस्तार में अनेक कष्टोंको सहर्ष झेलते हुए, गाँव गाँव में पैदल घुमकर, जो जैन होते हुए भी जैनधर्म को बिलकुल भूल गये थे ऐसे हजारों लोगों के हृदय में जैनधर्म की पुनः प्रतिष्ठा की । अनेक गाँवों में जिनालय, उपाश्रय, पाठशाला आदि की नूतन स्थापना एवं जीर्णोद्धार करवाये साथ में धार्मिक शिक्षण शिबिरों के माध्यम से हजारों युवकों का जीवनोद्धार भी किया। हाल करीब ८० स्थानों पर उनकी प्रेरणा से जीर्णोद्धार के कार्य चालु हैं । सन १९८४ में सौराष्ट्र के मोरबी शहर के पास मच्छु नदी का बाँध टूटने से जो भयानक जानलेवा पूर आया था उसमें हजारों लोग बूरी तरह फंस गये थे, तब दयालु कुमारपालभाईने अपने मित्र मंडल के साथ वहाँ जाकर अन्न, वस्त्र, औषध आदि की अनेकविध सहायता देकर पीड़ित लोगों के आँसु पोंछकर आश्वासन दिया था। सन १९८७ से १९८९ तक तीन साल निरंतर गुजरात में भयंकर अकाल हुआ था तब जीवदया, अनुकंपा और मानवसेवा के महान कार्य किये.... इस विशाल कार्य में वे हिम्मत और लगन से पार उतरे और अपूर्व कर्मनिर्जरा की।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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