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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ २५१ सन १९८९-९० में ओरिस्सा में भयंकर अकाल हुआ । अन्न और पानी के बिना हजारों-लाखों मनुष्य और पशुओं की स्थिति अत्यंत दयापात्र हो गयी थी तब वहाँ जीवदया और मानवसेवा के अद्भुत कार्य किए । सन १९९३ में महाराष्ट्र के लातुर जिले में भयंकर भूकंप हुआ था, जिसमें करीब ३२ हजार लोगों ने जान गँवायी । हजारों लोग विकलांग और निराधार बन गये थे, उनको भी अन्न-वस्त्र- औषधि और नकद राशि की सहायता देकर सेवा की और जैन शासन का दया करुणा का संदेश सच्चे अर्थ में फैलाया । कुमारपालभाई धोळकामें अपने वहाँ शिल्पी को रखकर जिन बिम्ब बनवाते हैं और इच्छुक संघों को भक्तिपूर्वक भेंट देते हैं । अगर कोई संघ के अग्रणी श्रावक जिनमूर्ति का नुकरा लेने के लिए आग्रह करते हैं तो कुमारपालभाई हँसते हुए उनको कहते हैं कि 'आप प्रतिमाजी को प्रेम से ले जाईए, मगर मुझे नुकरा लेकर व्यवसाय नहीं करना हैं' !... इन के अलावा भी साधु-साध्वीजी भगवंतों की वैयावच्च, साधर्मिक भक्ति, जीवदया, पांजरापोलों की सहायता सत् साहित्य का प्रकाशन, जैन आचारों का प्रचार-प्रसार इत्यादि अनेकविध सत्कार्य कुमारपालभाई निःस्पृहभाव से हमेशा किया करते हैं । सन्मान - सत्कार से वे सदा दूर ही रहते हैं । आज तो उपरोक्त प्रकार की शुभ प्रवृत्तियों के लिए श्री के. पी. संघवी आदि कई दानवीर स्वयमेव उनको लाखों-करोड़ों रूपयों का सद्व्यय करवाने के लिए विज्ञप्ति करते रहते हैं, मगर प्रारंभ में तो वे स्वयं अपने ही तन-मन-धन से यथाशक्ति सत्कार्य करते रहते थे । सत्प्रवृत्तियों के लिए भी वे कभी किसी से कुछ भी राशि माँगते नहीं हैं। बिना माँगे स्वयमेव जो दानवीर उनको विज्ञप्ति करते हैं, उनको वे दान देने के स्थानों का निर्देश करते हैं और दाताओं के हाथों से ही सत्कार्य करवाते हैं !!!..... अपने परमोपकारी गुरुदेव पू. आ. श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. के
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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