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________________ २४९ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ धार्मिक शिक्षण शिबिर द्वारा जैन आचार, जैन तत्त्वज्ञान, मार्गानुसारी जीवन, जैन इतिहास, धार्मिक सूत्रों के रहस्य इत्यादि पढने के लिए गये थे । इस जैन धार्मिक शिक्षण शिबिरमें युवकों के पथदर्शक थे.... वर्धमान, तपोनिधि, न्याय विशारद, धार्मिक शिबिरों के माध्यम से आध्यात्मिक क्रांति लानेवाले प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज साहब । . उनकी हृदयस्पर्शी वाणी से आज तक हजारों युवक आकर्षित हुए हैं और न्याय, नीति, सदाचार और संयम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं। इस हृदयस्पर्शी वाणी का आकर्षण कुमारपालभाई के उपर भी हुआ । धार्मिक शिक्षण के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करते हुए कुमारपालभाई के जीवनमें एक आकस्मिक घटना ने परिवर्तन का मोड़ ला दिया । माउन्ट आबू के उस ऊँचे शिखर अचलगढ पर अचानक बारिस के साथ भयंकर पवन का तूफान उठा । उस विनाशक तूफान में शिबिर के टेन्ट उड गये, तो उष्ण जल को ठंडा बनाने की परातें भी उडीं । मकान के नलिये भी उडे और विशालकाय वृक्ष भी धराशायी हुए । ऐसे आपत्तिकालमें १७ साल की उम्रवाले नवयुवक कुमारपालभाई ने एक पवित्र संकल्प किया कि - 'अगर यह तूफान थोड़ी ही देरमें शांत हो जायेगा तो मैं आजीवन ब्रह्मचर्य पालनका व्रत ले लूंगा' । ..... और आश्चर्य हुआ । वह भयानक तूफान क्षणभरमें शांत हो गया। कुमारपालभाई ने ज्ञानदाता गुरुदेव पू.आ. श्री विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. को अपने शुभ संकल्प की बात कही । पूज्यश्री को अपार प्रसन्नता हुई और अनेक शुभाशिष पूर्वक अपने इस प्रिय शिबिर शिष्य को आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत प्रदान किया । सर्वत्र आनंद का वातावरण फैल गया । बाद में तो कुमारपालभाई ने प्रतिज्ञा की कि - 'जब तक चारित्र न ले सकुँ तब तक मिष्टान्न एवं घी का मूल से त्याग' !!!... कुमारपालभाई की भीष्म प्रतिज्ञा और भव्य संकल्प ने जैन शासन
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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