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________________ २३५ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ की निश्रामें करवाया था । इन सभी आयोजनों में आर्थिक सहयोग संपूर्णतया विमलभाई का होते हुए भी वे हमेशा पर्दे के पीछे ही गुप्त रहना पसंद करते हैं और श्री संघका नाम ही हमेशा आगे रखते हैं । इतनी आर्थिक अनुकूलता होते हुए भी वे खुद सोने के आभूषण और रंगीन कपड़ों का त्याग करके श्वेत वस्त्र ही पहनते हैं, दो टाईम प्रतिक्रमण एवं सामायिक करते हैं । उनकी धर्मपत्नी सुश्राविका श्री रतनबाई स्वयं धर्मनिष्ठ होती हुई अपने पतिदेव को भी विशेष रूपसे धर्ममय जीवन जीने के लिए हमेशा प्रेरणा देती रहती है, अत: दोनों ने वर्षीतप साथमें किया तब ब्रह्मचर्य का संपूर्ण पालन किया था । उपर्युक्त प्रकार से विशिष्ट जिनभक्ति और गुरुभक्ति करते हुए अपने पतिदेव को रतनबाई हमेशा आरंभ-परिग्रह का त्याग करके चारित्र जीवन का स्वीकार करने के लिए प्रेरणा करती रहती हैं, फलतः उन्होंने २ साल पूर्व अपने सुपुत्र पृथ्वीकुमार को शंखेश्वर महातीर्थ में भव्य महोत्सव के साथ उपरोक्त आचार्य भगवंत श्री के शिष्यरत्न, कुशल प्रवचनकार गणिवर्य श्री रश्मिरत्नविजयजी म.सा. के शिष्य मुनि मोक्षांगरत्न के रूपमें दीक्षा दिलाई तथा साथमें दूसरे १२ मुमुक्षओं की भी दीक्षा हुई । इस भव्य दीक्षा महोत्सवमें हेलीकोप्टर द्वारा वर्षीदान इत्यादि आयोजनों द्वारा लाखों रूपयों का सद्व्यय विमलभाई ने किया मगर कहीं पर भी अपने नाम का बेनर वगैरह लगाने नहीं दिया । दूसरे सुपुत्र रुचितकुमार (उम्र वर्ष ९) को भी उपरोक्त गुरु भगवंत के पास संयम का प्रशिक्षण दिला रहे हैं । और अब स्वयं भी चारित्र की भावना से गुरुदेव श्री के साथ विहार कर रहे हैं । संभवतः इस चातुर्मास के बाद वे अपनी धर्मपत्नी और सुपुत्र के साथ चारित्र ग्रहण करेंगे । भावोल्लास में अभिवृद्धि होने से एक बार विमलभाईने अपने गुरु भगवंत को कह दिया था कि मेरी तिजोरी की चाभी मैं आपको अर्पण कर दूँ और आप जहाँ और जितना दान देने का आदेश करें वहाँ उतना दान देने के लिए तैयार हूँ। ऐसे बेमिशाल प्रभुभक्त और अनन्य गुरुभक्त मुमुक्षुरत्न श्री विमलभाई संघवी की देव-गुरु-धर्म भक्तिकी भूरिश: हार्दिक अनुमोदना ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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