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________________ २३६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ पता : विमलभाई जीवराजजी सिंघवी ३२०/१४, आदर्श बिल्डींग, गोकुलनगर, भीवंडी, जि. थाणा (महाराष्ट्र). फोन : ५२४०२ (घर) / २२४५९ (फेक्टरी) || सामायिक और जिनपूजा नहीं होने पर १०-१० हजार १०८ वाये जिनमंदिर के कोष में डालने का अभिग्रह धारण करते हुए युवा प्रावकरल धीरुभाई झवेरी श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामीने मगधसम्राट श्री श्रेणिक महाराजा को कहा था कि - 'हे राजन् ! सारे मगध देश का साम्राज्य पुणिया श्रावक को देने से भी उसके एक सामायिक के पुण्य को तुम नहीं खरीद सकोगे।' पुणिया श्रावक के इस दृष्टांत को व्याख्यान में अनेक बार सुनने के बावजूद भी सामायिक को जीवन में आत्मसात् करने का नियमित पुरुषार्थ करने वाले कितने होंगे ? शायद व्यवसाय या गृहकार्य से निवृत्त हुए कुछ श्रावक-श्राविकाएँ प्रतिदिन ३-४ या अधिक सामायिक करते भी होंगे मगर व्यवसाय की जिम्मेदारी होने से अक्सर विदेश भी जाना पड़ता हो फिर भी प्रतिदिन एक सामायिक अचूक करने का अभिग्रह धारण करनेवाले सुरत के युवा श्रावकरत्न धीरुभाई झवेरी (पू.आ.भ.श्री भद्रगुप्तसूरिजी म.सा. और पू.प्रवर्तक श्री धर्मगुप्तविजयजी म.सा. के संसारी भानजे) का दृष्टांत सचमुच अत्यंत अनुमोदनीय और अनुकरणीय है । सामायिक और जिनपूजा की महिमा व्याख्यानमें श्रवण करने के बाद उन्होंने नियमित जिनपूजा और एक सामायिक करने का संकल्प किया। लेकिन हीरों के व्यवसाय निमित्त से उनको अक्सर एन्टवर्प इत्यादि विदेशों में जाना पड़ता था, जिस के कारण उपरोक्त संकल्प कई बार टूट जाता
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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