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________________ २३४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ शामिल होना पड़ा। व्यवसाय में व्यस्तता आदि कारणों से कुछ समय के लिए वे मानो धर्म से थोड़े दूर हट गये थे, मगर एक दिन प्रखर प्रवचनकार मुनिराज श्री अक्षयबोधिविजयजी महाराज के प्रवचन श्रवण से पुन: सुसुप्त धर्म संस्कार जाग्रत हो गये और जीवन को धर्म द्वारा विमल बनाकर अपने नामको सार्थक बनाने का उन्होंने दृढ संकल्प किया । प्रतिदिन जिनपूजा करने का प्रारंभ किया और जिनवाणी श्रवण से भावोल्लास में अभिवृद्धि होती गयी । फलत: उन्होंने अष्टप्रकारी जिनपूजा के लिए करीब १५ लाख रूपयों के सद्व्यय द्वारा हीरों से जड़ित सुवर्ण के उपकरण बनवाये, जिनमें ५ लाख रूपयोंका हीराजड़ित सुवर्ण कलश, ४ लाख रूपयों का दर्पण, १ लाख रूपयों के चामर युगल, १ लाख रूपयों की सुवर्ण कटोरी इत्यादिका समावेश होता है !!!... संसार की चार गतियों से छुटकर, ज्ञान- दर्शन - चारित्र रूपी रत्नत्रयी की प्राप्ति द्वारा पंचम गति मोक्षको पाने की पार्थना करने के लिए वे प्रतिदिन स्वस्तिक के उपर चांदी की तीन मुद्राएँ रखकर सिद्धशिला का आलेखन करते हैं और महिने में एक बार सोने की ३ मुद्राएँ रखकर प्रार्थना करते हैं । इसके लिए वार्षिक १ लाख रूपयों का सद्व्यय वे करते हैं । प्रभुभक्ति के साथ साथ उनकी गुरुभक्ति भी बेमिशाल ही है । साल में एक बार प्रभुजी के समक्ष एवं १ बार उपकारी गुरुदेव ( उपर्युक्त आचार्य भगवत) के समक्ष वे सुवर्ण के स्वस्तिक का आलेखन करते हैं । पिछले करीब ५ सालों से अपने उपकारी गुरु भगवंत का जहाँ भी चातुर्मास प्रवेश होता है वहाँ जाकर गुरुदेव के समक्ष उनके देहप्रमाण जितने करीब ६ फूट के चांदी के स्वस्तिक का आलेखन करने द्वारा गुरुभक्ति की अभिव्यक्ति करते हैं और उपस्थित हजारों लोंगों के हृदय में गुरुदेव के प्रति आस्था बढाने का सुप्रयास करते हैं । इसी भावना से आज से ३ साल पूर्व जब उपरोक्त आचार्य भगवंतश्री का चातुर्मास अहमदाबादमें गिरधरनगर उपाश्रयमें था तब एक दिन विमलभाई ने वहाँ गुरुदेव श्री की निश्रा में हठीसिंह की वाड़ीमें एक साथ साढे पाँच हजार पुरुषों के समूह सामायिक का भव्य आयोजन भी करवाया था और एक दिन अहमदाबाद के समस्त संघों के ट्रस्टीयों का बहुमान भी गुरुदेव श्री
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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