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________________ २२१ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ प.पू. आचार्य भगवंत श्री विजय विक्रमसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय में दीक्षा ली हुई है और एक भानजे भी उपरोक्त आचार्य भगवंत के शिष्य मुनिराज श्री अजितयश विजयजी बनकर हररोज अनुमोदनीय प्रभुभक्ति करते-करवाते हैं। उनकी एवं उनके गुरुबंधु मुनिराज श्री वीरयशविजयजी म.सा.की स्मरण शक्ति इतनी तेज है कि दोनों पर्युषण में बारसा सूत्र बिना किताब में देखे ही सुनाते हैं । करीब ३५० श्लोक प्रमाण पक्खीसूत्र भी एक ही दिनमें कंठस्थ कर लिया था । वे दोनों आज सुप्रसिध्ध प्रवचनकार प.पू. आ.भ. श्री विजय यशोवर्मसूरीश्वरजी म.सा. के साथ विचरते हैं । गिरिशभाई के दृष्टांतमें से प्रेरणा लेकर सभी निष्काम विशिष्ट प्रभुभक्ति के द्वारा मानव भवको सफल बनायें यही शुभाभिलाषा । पत्ता : गिरीशभाई ताराचंदजी महेता ५४- ५६ रामवाडी, कालबादेवी रोड, मुंबई-४००००४ फोन : २०६०५७९-२०१३०६५-घर प्रतिदिन ५४ जिनालयों में पूजा करनेवाले सुश्रावक 'जिनदास आज जब एक ओर जिन मंदिर घर के पास में होते हुए भी प्रतिदिन प्रभुदर्शन या जिनपूजा करने के लिए उपेक्षा या आलस्य करने वाले जैनकुलोत्पन्न अनेक आत्माएँ विद्यमान हैं तब दूसरी और भूतकाल के विशिष्ट जिनभक्त श्रावक पुंगवों की स्मृति करानेवाले बेजोड़ प्रभुभक्त सुश्रावक भी जिनशासन में विद्यमान हैं । प्रतिदिन ५४ जिनालयों में न केवल प्रभुदर्शन किन्तु जिनपूजा करनेवाले श्रावकरत्न आज भी विद्यमान हैं यह बात शायद किसी को असंभव सी लगती होगी मगर दि. २८-१-९६ के दिन अहमदाबाद के एक उपाश्रय में ऐसे श्रावकरत्न से हमारी भेंट हुई तब उनके हृदय के
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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