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________________ २२० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ स्वयं लेकर अत्यंत विशिष्ट रूपसे प्रभुभक्ति की थी तब सद्भाग्य से हम भी वहाँ उपस्थित थे । गृह मंदिर में पूजा करने के समय में प्रभुभक्ति के रंग में भंग न हो इसलिए वे टेलीफोन का रिसीवर भी नीचे रख देते हैं ।... प्रभुभक्ति की तरह गिरीशभाई प्रभुजी के पूजारी की भी उदारता से भक्ति करते हैं । पूजारी को अपेक्षा से अधिक वेतन देते हैं । उसके गाँव में उसका घर बना दिया है । उसे अपने घर के सदस्य की तरह ही अपने साथ प्रेमसे रखते हैं । 1 द्रव्यानुयोग के प्रखर चिंतक एवं विशिष्ट आत्मसाधक बा.ब्र. पंडितवर्य श्री पन्नालालभाई उनके सम्यक्ज्ञानदाता विद्यागुरु हैं । उनका वे अत्यंत बहुमान करते हैं । विशिष्ट प्रभुभक्ति एवं सात्त्कि मंत्र साधना से कई प्रकार के विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभव भी गिरीशभाई को होते हैं । कुछ वर्ष पूर्व जब उनकी मासिक आय अत्यंत मर्यादित थी तब भी वे स्वयं सादगी से जीवन जीते थे, मगर प्रभुभक्ति में आय का अधिक हिस्सा लगाते थे । आज उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है, मगर अधिक कमाने के लिए उन्हें अधिक समय तक परिश्रम नहीं करना पड़ता । केवल २-३ घंटे ही व्यवसाय के लिए जाते हैं, बाकी का सारा समय वे प्रभुभक्ति, जप, सामायिक, स्वाध्याय और सत्संग में बिताते हैं । 2. इस तरह विशिष्ट प्रभुभक्ति करने से उनको ऐसी अदभुत चित्त प्रसन्नता, और सात्त्विक आनंद की अनुभूति होती है कि मोहमयी मुंबई नगरी में रहते हुए भी, अनेक प्रकार से सुविधा युक्त युवावस्थामें भी उनको शादी करने की इच्छा ही नहीं हुई । विवाह के लिए आग्रह करनेवाले परिवार जनोंको उन्होंने विनय पूर्वक प्रत्युत्तर दिया कि - 'मेरा विवाह परमात्मा के साथ हो चुका है, अब मुझे अन्य किसी से भी विवाह करना नहीं है । गिरिशभाई की एक बहनने नित्य भक्तामरस्तोत्र पाठी, तीर्थ प्रभावक
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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