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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ १९७ विहार किया । माटुंगा में चातुर्मास के दौरान वहाँ के ट्रस्टी सुश्रावक श्री पंकजभाई डोक्टर के मार्गदर्शन के मुताबिक म.सा. की सेवा करते थे । कुल ९ महिनों तक उपचार हुए । अब केन्सर की गाँठ चने की दाल जितनी छोटी-सी हो गयी थी और पीड़ा बिल्कुल दूर हो गयी थी, इसलिए द्रव्य-भाव दोनों उपचार बंद किये गये । ६ महिनों के बाद पुन: पीड़ा शुरू होने से उन्होंने मेरा संपर्क किया। मैने पुन: नवकार महामंत्र का जप शुरू किया और डॉक्टर की राय के अनुसार ५० प्रतिशत अन्न और ५० प्रतिशत फल पर रहने का निर्णय हुआ। वि.सं. २०५१ में अक्षय तृतीया के दिन डॉ. अजय शाह म.सा. को देखने के लिए आये और - 'अब केन्सर बिलकुल केन्सल हो गया है' ऐसा निदान लिख दिया । प्रस्तुत दृष्टांतमें धीरजभाई को ध्यानावस्थामें महावीर स्वामी भगवान, चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान और गौतम स्वामी गणघर भगवंतके साक्षात् रूपमें दर्शन हुए, प्रभुजीने प्रश्नों के प्रत्युत्तर दिये, औषध प्रदान किया ... इत्यादि पढकर किसी भी बुद्धिजीवी व्यक्तिको स्वाभाविक रूपसे प्रश्न हो सकता है कि यह सब कैसे संभव हो सकता है ? क्योंकि परमात्मा वीतराग होते हैं और निरंजन निराकार स्वरूपसे सिद्धशिला के उपर बिराजमान होते हैं ऐसे शास्त्रोमें कहा गया है, तब उपरोक्त बातें कैसे घटित हो सकती हैं ?... इत्यादि । इन प्रश्नों का समाधान निम्नोक्त प्रकारसे हो सकता है । एक तो उपरोक्त बातों को कहनेवाले .धीरजभाई एकदम भद्रिक परिणामी, निष्कपटीनिखालस हैं इसलिए उनकी बातों को मिथ्या कह देने का दुःसाहस करना उचित नहीं है। दूसरी बात यह है कि उनको ध्यानावस्थामें प्रभुजी की ओर से जो भी सूचनाएँ मिली हैं, उसके अनुसार ही हमेशा घटनाएँ घटित हुई हैं इसलिए इन अनुभवों को केवल कल्पना, भ्रमणा या मिथ्या आभास मानकर उपेक्षा करना भी उचित नहीं है ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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