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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ प्रार्थना-मौन आदि द्वारा वे साधना करते थे । जिस तरह बालक अपनी माँ के पास कभी हठ करता है, उसी तरह नानजीभाईने भी एक बार प्रभुजी के समक्ष हठ की कि- 'अब संतोषकारक विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूति होगी तभी ही यह मस्तक उपर उठेगा अन्यथा नहीं, चाहे कितने ही घंटे या दिन क्यों न लगें !' ऐसा बोलकर प्रभुजी के समक्ष उन्होंने अपना शिर जमीन पर झुका दिया । करीब २ घंटें तक उसी तरह शरणागति के भावमें, समर्पण मुद्रामें वे स्थिर रहे तब उनको संतोषकारक अनुभूति हुई और उसके बाद ही उन्होंने अपना मस्तक ऊँचा किया । ___ नानजीभाई की विज्ञप्तिसे एक ध्यान साधक महात्माने अपनी विशिष्ट आत्मशक्ति द्वारा उनको केवल २ मिनिट के लिए विशिष्ट शांति का अनुभव कराया था मगर उन्हें ऐसी क्षणिक शांति के बदले में चौबीसों घंटों तक अखंड रहे ऐसी अक्षय और गहन आत्मिक शांति और आनंद की चाहना थी, जो आखिरमें परमात्मा की शरणागति और सद्गुरु की कृपासे परिपूर्ण हुई !... " स्व-स्वरूप की अनुभूति के लिए किस प्रकार की साधना करनी चाहिए" ? ऐसे एक प्रश्न के प्रत्युत्तरमें उन्होंने कहा कि - "स्वानुभूति संपन्न सद्गुरु की शरणागति और उनकी कृपा द्वारा ही वह हो सकती है । लेकिन जब तक ऐसे प्रत्यक्ष सद्गुरु की प्राप्ति नहीं हुई हो तब तक परमगुरु परमात्मा की प्रतिमा या प्रतिकृति के समक्ष समर्पण भावसे प्रतिदिन हार्दिक प्रार्थना करने से समय का परिपाक होने पर साधक का विकास होता है, तब परमात्मा के अचिंत्य अनुग्रहसे एक दिन अवश्य सद्गुरु की संप्राप्ति साधक के ऋणानुबंध के अनुसार होती है और उनकी कृपासे साधक का कार्य सिद्ध होता है ।" . छअस्थ अवस्थामें सद्गुरु की खोज करने में भूल होने की बहुत संभावना रहती है, इसलिए उपरोक्त प्रकार से परमात्मा की शरणागति का स्वीकार करके साधना करने से एक दिन परमात्मा की अचिंत्य आहत्य शक्ति की प्रेरणासे आत्मज्ञानी सद्गुरु स्वयमेव साधक का हाथ थाम लेते
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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