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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ १६८ एन्जिनीयरींग कां. की शर्तें कुछ कठिन होते हुए भी उन सभी शर्तों को मंजूर रखकर ओफिसरने वह प्रोजेक्ट उनको ही सौंपा !!!.... - (५) सं. २०५२ में वैशाख महिने में कच्छमें ७२ जिनालय महातीर्थकी अंजनशलाका - प्रतिष्ठा के प्रसंगमें करीब १ महिने तक १०० से अधिक साधु-साध्वीजी भगवंतों की उदार भक्ति, सुपात्रदान और साधर्मिक भक्ति जो उनके परिवारने की वह सचमुच चिरस्मरणीय रहेगी । उस प्रसंगमें पंच कल्याण कों के उत्सवमें प्रभुजी के माता-पिता नाभिराजा और मरुदेवीमाता बनने की बोली बुलवाने के बदलेमें नुकरे से वह लाभ नानजीभाई को ही लेने के लिए ट्रस्ट के ट्रस्टी मंडलने स्वयमेव भावभरी आग्रहपूर्ण विज्ञप्ति की, यही उनकी अद्भुत लोकप्रियता और धर्मपरायणता का उदाहरण है । माईक और मंच से सदा दूर रहनेवाले नानजीभाईने यह लाभ अन्य किसी भी भाग्यशाली को देने के लिए नम्रतासे विज्ञप्ति की, लेकिन आखिरमें सभी की अत्यंत आग्रहपूर्ण भावपूर्वक बार बार की गयी विज्ञप्ति का, दाक्षिण्य गुण के कारण उनको स्वीकार करना ही पड़ा । और नाभिराजा के रूपमें उनकी अंतरात्मामें से भगवान के पिता के अनुरूप ही ऐसे अद्भुत आध्यात्मिक उद्गार सहज रूपसे निकलते थे, जिनको सुनकर सभी आश्चर्य चकित होकर सोचने लग जाते थे कि, 'सदा मौनप्रिय और मितभाषी नानजीभाई के बदलेमें सचमुच नाभिराजा ही बोल रहे हैं ।' ७३ इंचके मूल नायक श्री आदिनाथ भगवान को प्रतिष्ठित करने का महान लाभ भी नानजीभाईने और एक दूसरे भाग्यशालीने संयुक्त रूपसे अत्यंत अनुमोदनीय बोली बोलकर लिया था । इसके अलावा भी गांधीधाम, बड़ौदा, भद्रेश्वर, अंजार, आदिपुर इत्यादि कई संघों में बड़ी बड़ी राशि का दान उन्होंने अंश मात्रभी नामना की कामना रखे बिना दिया है । आत्मसाधना के प्रारंभकालमें उन्होंने आत्मानुभवी सद्गुरु की खोज के लिए कुछ परिभ्रमण किया, लेकिन कहीं भी संतोष नहीं हुआ । आखिर में जगद्गुरु और परमगुरु ऐसे श्री अरिहंत परमात्मा की शरणागति स्वीकार करके उनके अनुग्रह से जैसी अंतःस्फुरणा होती थी उसीके अनुसार
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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