SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ हैं और यथोचित मार्गदर्शन देकर उसको कृतकृत्य बना देते हैं ।" . महान योगीराज श्री आनंदघनजी के द्वारा रची हुई स्तवन चौबीसी नानजीभाई को अत्यंत प्रिय है । साधना मार्ग की श्रेष्ठ चाभियाँ इन स्तवनोंमें रही हुई हैं ऐसा वे बताते हैं । ___भूत-भविष्य के विकल्पों से मुक्त होकर वर्तमान क्षणमें आत्म जागृति पूर्वक जीने की कला आज नानजीभाई के लिए सहज हो गयी है । रात को नींद में भी वे केवल एक ही बार करवट बदलते हैं, वह भी जागृति पूर्वक ही । आत्मा की सूचना के बिना उनका शरीर भी करवट नहीं बदलता ! कई बार तो पूरी रात वे एक ही करवटसे आराम करते हैं । करवट भी नहीं बदलते। ऐसी उनकी आत्म जागृति सचमुच अनुमोदनीय है। अंतरात्मामें अनुभूयमान गहन आध्यात्मिक शांति उनकी मुखमुद्रा पर सदा झलकती रहती है । उनकी धर्मपत्नी अ. सौ. हीराकुंवरबाई (बचुबाई) का भी उनको हमेशा सहयोग मिलता रहा है। आत्मार्थी जीवों को नानजीभाई का सत्संग खास करने योग्य है। पता :- नानजीभाई चांपसी शाह शाह एन्जिनीयरींग कं., डी. बी. झेड. एन. १४७ गांधीधाम (कच्छ) (गुजरात) पिन. ३७०२०१ फोन : ०२८३६ - २०४६२ 8988 वृद्धावस्था में साधना का प्रारंभ करके विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियों को पाने वाले आत्मसाधक खीमजीमाई वालजी वास सामान्यतः आत्म साधना के लिए युवावस्था का समय श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि उस समयमें शारीरिक बल सुदृढ होने से तप-जप-ध्यान आदि दीर्घ समय तक स्थिरतापूर्वक किये जा सकते हैं । वृद्धावस्था में
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy