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________________ १३२ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ८ ४ ___ सिद्धितप करनेवाली मुफ्ताबहन भंगी गुजरात के सुरेन्द्रनगर शहरमें भारत सोसायटीमें वि. सं. २०४६में स्था. छ कोटि समुदाय के श्री भास्करमुनिजी आदिका चातुर्मास हुआ। उनकी प्रेरणासे कई आत्माओंने सिद्धितप किया । तब मुफ्ताबहन नामकी भंगी बहन भी ४४ दिनकी इस महान तपश्चर्यांमें शामिल हुई और विधिपूर्वक तपश्चर्या परिपूर्ण की । तपश्चर्या के दौरान हररोज व्याख्यान श्रवण, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि आराधना करती थी । सकल श्री संघ के अपने घर पगले करवाये। कंदमूल आदि अभक्ष्य का त्याग किया है । अपने रिश्तेदारों में भी अगर कोई मांसाहार करते हों तो उनके घरका पानी भी वह नहीं पीती ! | "यदि ससुराल में कंदमूल एवं रात्रिभोजन का त्याग ८५ करने की अनुमति मिलेगी तो ही मैं शादी कसंगी" __हरिजन कन्या नवलबाई गुजरात के कच्छ-वागड़ प्रदेश में, रापर तहसील में प्राग्पुर गाँव है। जिसमें १२ व्रतधारी, दृढधर्मी, ज्योतिर्विद, विधिकार सुश्रावक श्री वनेचंदभाई पटवा जैसे श्रावकों के करीब १५ जितने घर हैं । वनेचंदभाई के पिताश्री वालजीभाई ने प. पू. आ. भ. श्री विजय कनकसूरीश्वरजी म.सा. के सदुपदेश से शीतलनाथ भगवान का शिखर युक्त जिनालय अपनी देखभाल के नीचे श्री संघ के खर्च से बंधवाया है। इस गाँवमें हरिजन भाणाभाई पाँचाभाई परमार अपने परिवार के साथ रहते हैं । आजसे करीब २२ साल पूर्व उनको सोनगढवाले कानजी स्वामी और पिछडी हुई जातियों में जैन धर्म का प्रचार करते हुए उनके कुछ अनुयायीओं का परिचय हुआ । उन्होंने जैन धर्म एवं उसके आचार विचार भाणाभाई को समझाये । फलतः हरिजन भाणाभाई, उनकी धर्मपत्नी एवं उसके आचार
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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