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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ १३३ मोंधीबाई एवं मोंघीबाई के भाई मावजीभाई भगतने जैन धर्म को अंगीकार किया । रात्रिभोजन, एवं जमीकंद आदि अभक्ष्यों का आजीवन त्याग किया। माता-पिता की ओर से जैन धर्म के संस्कार मिलने के कारण उनकी १० साल की सुपुत्री नवलबाई ने भी जमीकंद आदि अभक्ष्यों का त्याग किया और रात्रिभोजन नहीं करने का भी नियम लिया। इस कन्या की उम्र जब १८ सालकी हुई तब उसके माता पिता योग्य वर की खोज करने लगे । तब नवलबाई ने माता-पिता को विनयपूर्वक स्पष्ट कह दिया कि "यदि ससुरालमें कंदमूल और रात्रिभोजन त्याग का नियम पालने की अनुमति मिलेगी तो ही मैं शादी करूंगी, अन्यथा नहीं" । माता-पिताने खुश होकर वरपक्ष के परिवार जनों को इस बात से अवगत कराया। वे भी इस बात में संमत हुए तब आज से करीब ९ साल पूर्व नवलबाई की शादी हुई । आज वह कच्छ-गांधीधाम में अपने ससुराल में रहती है । शादी के समय में भी रात्रिभोजन एवं जमीकंद आदि अभक्ष्य त्याग के नियम का बराबर पालन किया गया था । वागड़ प्रदेश के परमोपकारी, अध्यात्मयोगी, प. पू. आ. भ. श्री विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. प्राग्पुर गाँव में पधारते थे तब भाणाभाई, मावजीभाई और नवलबाई आदि व्याख्यान श्रवण के लिए अचूक जाते थे और अपनी आत्मा को धन्य मानते थे । . भाणाभाई की द्वितीय सुपुत्री अललबाईने भी माता पिता के संस्कारों से १० साल की उम्र में रात्रिभोजन एवं जमीकंद आदि अभक्ष्य त्याग का नियम लिया है । उसकी शादी आजसे ५ साल पूर्व कच्छ-गागोदर गाँवमें हुई है । शादी के बाद अपने पति को भी रात्रिभोजन और जमीकंद आदि अभक्ष्य भक्षण से जीवहिंसा का कितना भयंकर पाप लगता है उसे समझाकर त्याग करवाया है। इस तरह "धर्म पत्नी" के रूपमें अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाया है । (अपने आपको 'मोडर्न' कहलानेवाले आज के युवकयुवतियाँ इस दृष्टांत से कुछ बोधपाठ ग्रहण करेंगे ?) प्रागपुर से पूर्व दिशा में ३ कि.मी. की दूरी पर वल्लभपुर नामका गाँव है । वहाँ पीछड़ी हुई जातियों के निम्नोक्त लोग जैन धर्मका पालन
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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