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________________ ११४ ६५ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ परमार क्षत्रिय दंपति अंबालालभाई और रेवाबहन की अनुमोदनीय आराधना में बड़ौदा जिले के बोडेली विभागमें खांडीया गाँव के निवासी परमार क्षत्रिय ज्ञातीय अंबालालभाई रावजीभाई बाटीया (उ. व. ३८) एवं उनकी धर्मपत्नी रेवाबहन को सदगुरुओं के सत्संग से जैन धर्मका रंग लगा है। फलतः अंबालालभाई ने आज तक निम्नोक्त प्रकार से अनुमोदनीय आराधना की है। (१) प्रथम उपधान तप वालकेश्वर (मुंबई) में प. पू. आ. भ. श्री विजय हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें किया (२) प. पू. पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखरविजयजी म.सा. की निश्रामें सुरत में २ मास तक धार्मिक शिबिरमें शामिल हुए (३) छठ्ठ तप के साथ शत्रुंजय महातीर्थकी सात यात्राएँ दो बार कीं (४) अठ्ठाई तप, नवपदजी की ओलीयाँ, उपवास से बीस स्थानक की १० ओलियाँ इत्यादि तपश्चर्या की है। (५) समेतशिखरजी आदि तीर्थों की यात्रा (६) पंच प्रतिक्रमण, नवस्मरण इत्यादि धार्मिक अभ्यास एवं ५ साल तक धार्मिक पाठशाला में अध्यापन (७) अच्छारी जैन संघमें १७ साल तक पूजारी का अनुभव (८) हाल २ साल से वापी में महावीरनगरमें अचलगच्छ जैन संघमें पूजारी का कार्य सम्हालते हैं । अंबालालभाई की धर्मपत्नी रेवाबहनने भी २ प्रतिक्रमण सूत्र तक धार्मिक अभ्यास किया है । हररोज जिनपूजा, नवकारसी, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि आराधना करते हैं । नवपदजी की ९ ओली, वर्धमान तपकी १२ ओली, उपधान तप, अठ्ठम एवं अठ्ठाई तप, २४ तीर्थंकरों के एकाशन इत्यादि तपश्चर्या की है ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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