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________________ ११३ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ से पालिताना एवं अहमदाबाद से पालिताना के छ:'री' पालक संघों में शामिल होकर छ:'री' के नियमों का पालन करके उन्होंने यात्राएं की हैं। जयेन्द्रभाई की धर्मपत्नी भी उमरेठ की गर्ल्स हायर सेकन्डरी स्कूल में प्रिन्सीपाल थीं । वहाँ एक भी जैन घर नहीं होने से विहार में पधारते हुए जैन साधु-साध्वीजीओं को गौचरी-पानी बहोराना इत्यादि हरेक प्रकार की वैयावच्च का वे उल्लास के साथ लाभ लेती थीं । उन्होंने भी पालिताना, हस्तगिरि, शंखेश्वरजी आदि जैन तीर्थों की सानंद यात्राएं की हैं। उनके एक सुपुत्र भी B. E. Civil सरकारी नौकरी करते हैं और शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के प्रति अत्यंत आस्था रखते हैं । वे प्रतिवर्ष शंखेश्वर तीर्थ की यात्रा अवश्य करते हैं । इस तरह जैनेतर कुल में उत्पन्न होने के बावजूद भी सत्संग के द्वारा जैन धर्म का विशिष्ट रूप से पालन करते हुए भाग्यशाली आराधकों का जैन समाज के द्वारा अत्यंत गौरव के साथ स्वीकार होना चाहिए और अवसरोचित जाहिर बहुमान करके उपबृंहणा करनी चाहिए। प्रोत्साहन एवं सहयोग देना चाहिए, ताकि वे अधिकाधिक उल्लासपूर्वक जैनशासन की आराधना द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण कर सकें और अन्य भी अनेक आत्माओं के लिए आराधनामय जीवन जीने के लिए उदाहरण रूप बन सकें । सुज्ञेषु किं बहुना ! शंखेश्वर में आयोजित अनुमोदना-बहुमान समारोह में उपस्थित रहने के लिए जयेन्द्रभाई को भी निमंत्रण भेजा गया था मगर उस वक्त वे पालिताना में चातुर्मासिक आराधना में लीन होने के कारण नहीं आ सके थे । पता : जयेन्द्रभाई प्राणजीवनभाई शाह . १६, आभार सोसायटी, एस. आर. पी. पेट्रोल पंप के पास, निझामपुरा, वड़ोदरा (गुजरात) पिन : ३९०००२ दूरभाष : ०२६५ - ७९२४६२ बहुरत्ना वसुंधरा - १-8
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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