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________________ ११२ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ९९ यात्राएँ, पालिताना में चातुर्मासिक आराधना इत्यादि आराधनाएं की हैं। हररोज प्रातः ३.३० बजे उठकर सामायिक लेकर नवकार महामंत्र की जप ध्यान एवं प्रायः प्रतिक्रमण भी करते हैं । नवपदजी की ओली और पर्युषण में तो वे अचूक उभय काल प्रतिक्रमण करते ही हैं । नवपदजी की ओलियाँ केवल एक धान्य के आयंबिल से की हैं ! इ.स. १९७५ से १९९४ तक सप्ताह में पांच दिन एकाशन और पर्वतिथियों में आयंबिल करते थे । उस वक्त वे उमरेठ गाँव में रहते थे और नौकरी के लिए वड़ोदरा जाते थे । इ.स. १९९४ तक वड़ोदरा में, अहमदाबाद में या अन्य बड़े शहर में कहीं भी जाना हो तो बस या रीक्षा में बैठने के बजाय वे पैदल चलकर ही जाते थे, जिस से हररोज ८-१० मील जितना चलने का होता था । इससे शारीरिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता था । वे अधिकांश रूप में सफेद वस्त्र ही पहनते हैं । वस्त्र भी स्वयं सी लेते हैं और अपने वस्त्र धोने के लिए अन्य किसी को भी न देते हुए वे खुद ही धो लेते हैं । वस्त्रों के उपर लोहा ( इस्त्री ) भी स्वयं कर लेते हैं । फटे हुए कपड़ो को भी स्वयं दुरस्त कर लेते हैं । पिछले २५ से अधिक वर्षों से वे अपने बाल भी घर के सदस्य की सहायता से स्वयं काट लेते हैं !!! अनेक विशिष्ट उपाधियों से अलंकृत होते हुए भी एवं घर में भी हर प्रकार की अनुकूलता होने के बावजूद प्रौढ वय में भी वे अपने निजी सभी कार्य स्वयं ही कर लेते हैं। उनकी सादगी एवं स्वावलंबिता का गुण सचमुच अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय है । श्री जयेन्द्रभाई अच्छे लेखक एवं वक्ता भी हैं । उनके कई लेख 'सुघोषा', 'कल्याण' इत्यादि मासिकों में प्रकाशित हुए हैं । औरंगाबाद से समेतशिखरजी के छः 'री' पालक संघ में उनको प्रतिदिन वक्तव्य देने के लिए निमंत्रण दिया गया था । " मांसाहार त्याग", "कंदमूल अभक्ष्य क्यों" ?, " अचित्त जल के लाभ ", जैन धर्म की विशेषताएं इत्यादि विषयों के उपर उनके वक्तव्यों से जैनेतर जनता भी बहुत प्रभावित हुई थी । पाडिव 1
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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