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________________ १०९ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ आराधना (११) पालिताना में चातुर्मासिक आराधना (१२) अठुम, अट्ठाई एवं सिद्धि तप की तपश्चर्या (१३) नवपदजी की दो बार ९ ओली की तपश्चर्या (१४) आचार्य भगवंत सहित चतुर्विध श्री संघको दो बार अपने घरमें पगलिया करवा कर उचित भक्ति की। उनकी धर्मपत्नी दरियावकुंवरबहन भी पति के मार्ग का अनुसरण करती हुई जैन धर्मसे अधिवासित हुई हैं । करीब २० जितने जैनेतर भी लालसिंहजी के परिचय से जैन धर्म के प्रति प्रीति रखते हैं । श्री लालसिंहजी की आराधना की हार्दिक अनुमोदना । पता : श्री लालसिंहजी सवाईसिंहजी राठोड, मु. पो. कोट जि. पाली (राजस्थान), पिन : ३०६७०१ गोविंदजीभाई केशवलाल मोदी की अनुमोदनीय आराधना गुजरातमें पाटणमें रहते हुए गोविंदजीभाई मोदी (उ. व. ५३) को आज से ५ साल पूर्व सागर समुदाय के सा. श्री सुलसाश्रीजी (प. पू. पंन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी म.सा. की बहन म.सा.) के सत्संग से जैन धर्मका रंग लगा । बचपन से ही दीन दुःखियों के प्रति दया, मानवता, साधु-संतों के प्रति बहुमान भाव इत्यादि सदगुण गोविंदजीभाई के जीवन में आत्मसात् थे । उस में भी वि. सं. २०५१ में पाटण के जोगीवाड़ा में श्री शामळाजी पार्श्वनाथ भगवंत की प्रतिष्ठा हुई तब से गोविंदजीभाई के हृदय मंदिरमें मानो जैन धर्म की भी प्रतिष्ठा हो गयी । साध्वीजी भगवंत की प्रेरणा से वे निम्नोक्त प्रकार से आराधना अत्यंत रुचि पूर्वक, एकाग्र चित से, भावोल्लास के साथ करते हैं। (१) प्रतिदिन प्रातः ५.३० से ९.०० बजे तक श्री शामळाजी पार्श्वनाथ जिनालयमें नवकार महामंत्र का जप, प्रभुजी के निर्माल्य की
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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