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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ उपरोक्त प्रकार से जिनभक्ति करने से उनको अपूर्व शांति और आनंदका अनुभव होता है । एक भी बार जिनभक्ति का खंडन नहीं हुआ है। कई बार स्वप्नमें श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के दर्शन भी होते हैं । शंखेश्वर तीर्थ में आयोजित अनुमोदना समारोह में संयोगवशात् वे उपस्थित नहीं रह सके थे मगर उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए अत्यंत अहोभाव व्यक्त किया था और उसी चातुर्मास में वे दर्शनार्थ शंखेश्वरमें आये थे । उनकी तस्वीर पेज नं. 20 के सामने प्रकाशित की गयी है । जसभाई की एकाग्रता और अप्रमत्तता पूर्वक जिनभक्ति की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना । १०८ ६२ पता : जसभाई मंगलभाई पटेल, १२ बी साधना सोसायटी, सिविल होस्पीटल रोड, मु. पो. ता. नडियाद, जि. खेडा (गुजरात), पिन : ३८७००१. फोन : ६०१०७. त्रिकाल जिनेश्वर भगवंत के दर्शन, पूजा एवं उपधान आदि अदभुत आराधना करते हुए राजपूत श्री लालसिंहजी सवाईसिंहजी राठोड । राजस्थान में पाली जिले के कोट गाँव में लालसिंहजी सवाई सिंहजी राठोड नामके राजपूत रहते हैं आजसे करीब ५ साल पूर्व में उनको एक जैन साध्वीजी भगवंत के सदुपदेशसे जैन धर्म का परिचय हुआ । साध्वीजी की प्रेरणा से एवं बादमें अनेक सद्गुरुओं के सत्संग एवं सदुपदेश से वे निम्नोक्त प्रकार से जैन धर्म की सुंदर आराधना करते हैं 1 (१) प्रतिदिन त्रिकाल जिनदर्शन (२) नित्य जिनपूजा (३) प्रतिदिन प्रतिक्रमण, (४) हररोज २ - ३ सामायिक (५) हररोज ४ पंक्की नवकारवाली का जप (६) प्रतिदिन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान आदि की अलग अलग २० माला का जप (७) प्रत्येक चतुदर्शी के दिन आयंबिल तप (८) नित्य नवकारसी एवं तिविहार का पच्चक्खाण ( ९ ) प्रतिमाह पाँच तिथि हरी वनस्पति का त्याग (१) ४७ दिनके उपधान तप की सुंदर
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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