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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ १०७ स्थावर और जंगम तीर्थमें फर्क इतना है कि स्थावर तीर्थ की उपासना का फल कालांतरसे मिलता है, जब कि जंगम (चलते फिरते) तीर्थ स्वरूप साधु भगवंतों का सत्संग तात्कालिक फलप्रद होता है ।) इस शास्त्र वचनों का हार्द ऐसे दृष्टांतों से समझमें आ सकता है। सभी जीव सत्संग द्वारा अपने मानव भवको सफल बनायें यही शुभेच्छा । जोषी परिवारकी आराधना की हार्दिक अनुमोदना । पता : पेइन्टर जोषी, मु. पो. जि. रतलाम, हातोद, जि. इंदोर (म.प्र.) प्रतिदिन सुबह-शाम २-२ घंटे खड़े खड़े जिनभक्ति ५१ एवं नवकार जप करते हुए जसभाई मंगलभाई पटेल नडीआद में रहते हुए जसभाई पटेल (उ. व. ७३) को सत्संग से जैन धर्म का रंग लगा है । कई वर्षों से वे प्रतिदिन सुबह-शाम करीब २-२ घंटे तक परमात्मा के समक्ष खड़े खड़े अत्यंत एकाग्रता से नवकार महामंत्र का जप एवं जिनभक्ति करते हैं । जप और प्रभुभक्ति के समय में आँख और मन परमात्मा के सिवाय कहीं भी जाएँ नहीं इसके लिए वे अत्यंत सावधानी रखते हैं । उनकी आराधनामय दिनचर्या निम्नोक्त प्रकार से है ।। प्रात : ५.३० से ८.१५ तक अपने घरमें प्रभुजी की प्रतिकृति के समक्ष जिनभक्ति, ८.३० से १०.१५ तक जिनालय में जाकर खड़े खड़े जिनभक्ति, १२.०० से १४.०० अपने घरमें प्रभुजी के समक्ष जप, १४.३० से १७.०० आध्यात्मिक सदवांचन, १८.०० से १९.४० जिनभक्ति, १९.४५ से २२.१५ जिनभक्ति एवं जप खड़े खड़े । ४० सालकी उम्र में दि. १-६-६५ के दिन उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा ली है । हमेशां नवकारसी एवं चौविहार का पालन करते हैं। रात्रिभोजन का त्याग किया है । सप्त महाव्यन एवं अभक्ष्य भक्षण का भी त्याग है ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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