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________________ १०६ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ७ लिखा हो तो नवकारका सातवाँ पद 'सव्व-पावप्पणासणो' बोलना चाहिए। इस तरह से अनानुपूर्वी द्वारा नवकार महामंत्रका स्मरण करने से चित्त की चंचलता कम होती है । चंचल मन पर काबू पाने के इच्छुक आत्माओं को यह प्रयोग खास करने योग्य है । करसनजी जाड़ेजा की आराधना की हार्दिक अनुमोदना । पता : करसनजी हाजाजी जाडेजा मु. पो. डुमरा, ता. मांडवी, कच्छ (गुजरात), पिन : ३७०४९० ६० धर्मरंग से रंगा हुआ पेइन्टर जोषी परिवार वि. सं. २०३० में प. पू. पंन्यास प्रवर श्री अशोक सागरजी म.सा. (वर्तमानमें आचार्यश्री) का चातुर्मास रतलाम हातोद (जिला इंदोर) में हुआ था, तब चित्रकार जोषी (हाल उम्र वर्ष ५५ लगभग) पूज्यश्री के परिचयमें आये और सत्संग द्वारा उनको जैन धर्म का रंग लगा । फिर तो धीरे धीरे उनके सारे परिवारको यह रंग लग गया । उनके परिवार के सभी सदस्य हररोज जिनमंदिरमें जाकर प्रभुदर्शन करते हैं । नवकार महामंत्र की माला गिनते हैं और जमीकंद का त्याग करते हैं । उनके छोटेभाई श्यामलभाई (उ. व. २८) ने पंच प्रतिक्रमणके सूत्र कंठस्थ किये थे । वे पर्युषणमें ६४ प्रहरी पौषध करते थे और दीक्षा लेनेकी भावना रखते थे । शास्त्रमें कहा है कि - 'साधूनां दर्शनं पुण्यं, तीर्थभूता हि साधवः । तीर्थं फलति कालेन, सद्यः साधु समागमः ॥ (अर्थ : साधु भगवंतों का दर्शन भी जीवको पवित्र बनाता है । सचमुच, साधु भगवंत संसार तारक जंगम तीर्थ स्वरूप है । फिर भी
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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