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________________ ९४ ४८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग प्रत्येक पणिमाकं दिन शंखेश्वर की यात्रा करते हुए कृष्ण मनस्वामी सेटीयार (मद ब्राह्मण) मूल मद्रासके निवासी, लेकिन कई वर्षोंसे मुंबई - मलाड़में रहते हुए कृष्ण मनुस्वामी सेटीयार (मद्रासी ब्राह्मण) (उ. व. ४६ ) को २४ सालकी उम्र से जैन युवक मित्रों की संगति के कारण जैनधर्म का रंग लगा । युवा प्रतिबोधक, प्रखर प्रवचनकार प. पू. पंन्यास प्रवर श्रीचन्द्रशेखरविजयजी म.सा., प. पू. आ. श्री रत्नसुंदरसूरिजी म.सा., प. पू. आ. श्री हेमरत्नसूरिजी म.सा. और प. पू. आ. श्री यशोवर्मसूरिजी म.सा. आदिके प्रवचन मित्रोंके साथ उन्होंने भी सुने और उत्तरोत्तर जैन धर्म के प्रति आकर्षण बढता गया । सत्संग के प्रभावसे वे कई वर्षोंसे निम्नोक्त प्रकारसे जैन धर्मकी नित्य और नैमित्तिक आराधनाएँ कर रहे हैं । (१) प्रतिदिन प्रातः कालमें ३ घंटे तक जिनालयमें प्रक्षाल, प्रभुपूजा और १०८ नवकारका जप करते हैं । (२) यावज्जीव के लिए जमींकंद का त्याग किया है । (३) अनुकूलता के मुताबिक रातको चौविहार या तिविहार करते हैं । (४) दिनमें ५ बारसे अधिक नहीं खानेका अभिग्रह लिया है (इसमें चाय भी पीएँ तो भी १ बार गिनते हैं ) । (५) पाँच बार अठ्ठाई तप किया है (६) पर्युषण के ८ दिन प्रतिक्रमण करते हैं । (८) १८ सालसे हर कार्तिक पूर्णिमा के दिन और ५ सालसे हर फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी के दिन सिद्धगिरिजी महातीर्थ की यात्रा अचूक करते है । (८) चार सालसे प्रति पूर्णिमा के दिन शंखेश्वरजीकी यात्रा करते हैं । उनके दोनों लघुबंधु राजुभाई और आनंदभाई भी हररोज जिनालय में जाकर प्रभुदर्शन करते हैं । तीनों भाईओंकी धर्मपत्नियाँ और संतानें भी हररोज जिनपूजा करती । २ साल पूर्व शंखेश्वर महातीर्थमें पूर्णिमाकी यात्रा करने के लिए आये कृष्ण मनुस्वामी से भेंट हुई थी ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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