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________________ बहुरला वसुंधर : भाग - १ ४७. जन पाध गावाजाको अपूर्व भक्ति करनवाल झमा गांवक, दरबार ( राजपूत ।। गुजरात में वढवाण से धांगध्रा के विहार मार्गमें झमरगाँव नामका छोट सा गाँव है । उस गाँवमें जिनमंदिर उपाश्रय और एक भी जैन घर नहीं है फिर भी उस गाँवमें पधारते हुए किसीभी जैन साधु साध्वीजीको जरा भी असुविधा नहीं होती है । क्योंकि गाँवमें रहते हुए एक दरबार (राजपूत) एक विशिष्ट श्रद्धालु श्रावककी तरह ही साधु साध्वीजी भगवंतोंकी अपूर्व भक्ति करते हैं। अपना एक मकान उन्होंने जैन साधु साध्वीजी भगवंतोंको ठहराने के लिए अलग ही रखा है। किसी भी समुदायके जैन साधु साध्वीजी वहाँ पधारते हैं तब मानों साक्षात् भगवान अपने घरके आंगनमें पधारे हों ऐसे अहोभावसे वे उनकी भक्ति करते हैं । ___ गोचरी - पानी, औषध आदि तो अहोभाव पूर्वक बहोराते हैं ही, लेकिन शीतऋतु में मेवा और उष्ण कालमें फल आदि द्वारा भी उल्लासपूर्वक भक्ति करते हैं । चाहे कितना भी बड़ा समुदाय आ जाय तो भी हर प्रकारकी वैयावच्च का लाभ वे सानंद लेते हैं। कुछ साल पूर्व उनको कुछ तकलीफ थी, जो किसी जैन मुनिवर के आशीर्वाद से दूर हो जाने से उनके अंत: करणमें जैन साधु साध्वीजी भगवंतों के प्रति श्रद्धा के बीजका वपन हो गया । बादमें जैन साधु साध्वीजी भगवंतोंका तप त्याग और सदाचारमय जीवन देखकर उत्तरोत्तर अहोभाव में अभिवृद्धि होती रही । आज वे व्यावहारिक दृष्टिसे साधन संपन्न हैं और पुण्योदयसे मिली हुई संपत्तिको इस तरह साधु साध्वीजी भगवंतोंकी विशिष्ट भक्ति द्वारा सफल बना रहे हैं । दरबार की सुपात्र भक्तिकी हार्दिक अनुमोदना सह धन्यवाद ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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