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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ एक ही प्रवचन से सचित्त पानीका त्याग करके आखिरमें संयमका स्वीकार करनेवाले सायवन्ना (मारुति) ४६ कई वर्षों तक लगातार व्याख्यान श्रवण करने के बाद भी कुछ 'व्याख्यान प्रूफ' श्रोताओं के स्वभावमें या आचरणमें विशेष कुछ सुधार नहीं पाया जाता है और लघुकर्मी सुपात्र श्रोता केवल एकाध बार प्रवचन सुनकर अपने जीवनमें कैसा आश्चर्यप्रद परिवर्तन ला सकते हैं यह निम्नोक्त दृष्टांतमें हम देखेंगे । आंध्रप्रदेश में रायचूरसे १८ मीलकी दूरी पर कूलची गाँवमें गंगेरु गोत्र के पिता हनमंतप्पा के कुलमें माता तिम्मव्वाकी कुक्षिसे एक बालकका जन्म हुआ । उसका नाम सायवन्ना (मारुति) रखा गया । शादीके बाद व्यवसाय के लिए सायवनाका विविध क्षेत्रोंमें परिभ्रमण होता था । एक बार आजसे २२ साल पूर्व आंध्रप्रदेश के कर्नुल गाँवमें उसने एक जैन मुनिका प्रवचन सुना । प्रवचनमें पानी की एक बुंदमें अप्काय के असंख्य जीवोंके अस्तित्वकी बात सुनकर सायवना चोंक उठा । उसने तत्क्षण सचित्त पानी के त्याग का नियम ले लिया । नित्य बियासन तपका प्रारंभ किया। बादमें धार्मिक अध्ययन के लिए बेंग्लोर जाकर अहोभावपूर्वक अध्ययन किया और सं. २०३२ में चतुर्विध श्री संघकी उपस्थितिमें गुंतूर नगरमें संयमका स्वीकार करके प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद विजय नीतिसूरीश्वरजी म.सा. के समुदायमें पू. मुनिराज श्री कस्तूरविजयजी म.सा. के प्रशिष्य मुनि राजतिलक विजय बने । वर्तमानमें उनकी प्रेरणासे राजस्थानमें जालोरके पास गोविंदपुर तीर्थमें कीर्तिस्तंभका भव्य निर्माण कार्य चालु है । चलो, हम इस दृष्टांतमें से प्रेरणा लेकर, एक कानसे प्रवचन सुनकर दूसरे कानसे निकाल देनेवाले चालनी जैसे श्रोता न बनें, प्रवचनमें सुनी हुई बातें ध्वनिमुद्रक (टेप) की तरह केवल मुख द्वारा दूसरोंको सुनाकर संतोष माननेवाले श्रोता भी न बनें, किन्तु सुनी हुई बातोंको जीवनमें आत्मसात् करनेवाले सच्चे श्रोता बननेका दृढ संकल्प करें । सुनकर हुई बातें ध्वनि वाले प्रोता । श्रोता बननेका
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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