SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ पुत्ररत्नको जन्म दिया, जिसका नाम "दिलीप" रखा गया । संयोगवशात दिलीप १० सालकी उम्र तक अपने मामाके घरमें रहा । मामा चायकी होटल द्वारा अपनी आजीविका चलाते थे। येवला आने के बाद दिलीप के संस्कारों में परिवर्तन हुआ । माता-पिता चुस्त ब्राह्मण थे, मगर माँ की ममता ऐसी थी कि अक्सर बिमार रहते हुए अपने बेटे के स्वास्थ्य के लिए अनेक प्रकारकी मनौतियाँ रखती थी । कभी पीरके स्थान पर वस्त्र भी चढ़ाती थी। लेकिन एक ऐसी धन्य घड़ी आयी जो दिलीपभाई के जीवनमें सुखद परिवर्तन लायी । जैन श्रावकके वहाँ टयुशन देने के लिए जाते हुए दिलीपभाईको जिनवाणी के पठन का सुनिमित्त मिला । इस तात्त्विक और सात्त्विक वांचनने उनकी हृदय-वीणाके तारों को झंकृत कर दिया । "सूर्यांशु भिन्नमिव शार्वरमंधकारम्" इस उक्ति के अनुसार सम्यकत्व की छोटी-सी ज्योति हृदयमें प्रकाशित होने से मिथ्यात्वके घोर अंधकारने विदा ली । तात्त्विक पुस्तकोंके पठनसे तत्त्व प्राप्त हुआ और साथमें अनेक जीवोंको संसार के समरांगणसे बचाकर संयम के सुरतरु उद्यानमें स्थापित करनेवाले पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. की मनमोहक तस्वीरका दर्शन हुआ । इससे तन-मनमें प्रसन्नता छा गयी। अंतर अहोभावसे आप्लावित हो गया। और साथमें कोट्याधिपति नवयुवक अतुलभाई (हितरूचिविजयजी म.सा.) की भव्यातिभव्य दीक्षाका विशेषांक हाथमें आनेसे हृदयमें कुछ अपूर्व प्रकारके स्पंदनोंका प्रादुर्भाव हुआ । "छोड़ने योग्य संसार, स्वीकारने योग्य संयम, प्राप्त करने योग्य मोक्ष" इस त्रिपदीकी भावनाके सुरम्य उद्यानमें रमते हुए दिलीपभाई ने संयम स्वीकारने का दृढ़ निर्णय कर लिया । . .. 'संसार अनेक पापोंका घर है, आत्माका कत्लखाना है' यह बात दिलमें ऐसी आत्मसात् हो गयी थी कि मां-बाप, बिना पूछे कहीं सगाई न कर दें, इसके लिए वे अत्यंत चिंतित हो उठे । मामाकी बेटीके साथ सगाई की बात सुनकर रागके तूफान और संसारकी श्रृंखलासे बचनेके लिए दिलीपभाई अपने घरसे भागकर, मालेगाँवमें बिराजमान प.पू. आ. भ. श्रीमद्
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy