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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ ____६३ कर्णाटक राज्यमें दावणगिरि गाँवके लिंगायत जाति के युवकने पू. आ. श्री अमरसेनसूरिजी म.सा. एवं मुनिराजश्री अश्वसेनविजयजी की प्रेरणासे दीक्षा ली । मुनि अरसेन विजय के नामसे प्रसिद्ध हुए । तपस्वी पू. आ. श्री अशोकरत्नसूरिजी म.सा.की सेवा एवं तपश्चर्या के द्वारा अपने जीवन को सफल बना रहे हैं। कर्णाटक राज्य के नरगुंड गाँवमें लिंगायत जातिमें जन्मे हुए बालक बसप्पाने शासन सम्राट, प. पू. आ. भ. श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी म.सा. के वरद हस्तसे दीक्षा अंगीकार की और मुनि श्री विद्याचंद्र विजयजी म.सा. के नामसे आज वे प. पू. आ. भ. श्री विजय श्रेयांसचन्द्रसूरिजी की निश्रामें संयम और तपश्चर्याकी सुंदर आराधना कर रहे हैं । २ वर्षीतप, ३ चौमासी तप, सोलभत्ता, अट्ठाई आदि तप द्वारा अनुमोदनीय कर्म निर्जरा वे कर रहे हैं। ___ इस प्रकारसे और भी कई दृष्टांत हैं जो जैनेतर कुलमें जन्म पाकर भी सत्संगसे जैन साधु साध्वीजी बनकर स्व-पर कल्याणमें निरत हैं, उन सभी महात्माओंकी हार्दिक अनुमोदना । २४ विप्रकुलोत्पन्न दिलीपभाई मापारीका वीतरागता के प्रति प्रधान वह देश धन्य है जहाँ त्याग मार्गका माहात्म्य दृष्टिगोचर होता है। वह गाँव नगर भी धन्य है, जहाँ त्याग मार्ग की अनुमोदना विशाल जनतामें सानंद होती है । वह कुटुंब भी धन्य है, जहाँ त्याग मार्ग को स्वीकार करके जीवनको चरितार्थ करनेवाले पुण्यात्माओंका जन्म होता है । ऐसे ही त्याग प्रधान भारत देशके महाराष्ट्र प्रांत के येवला गाँवमें विप्र शरदचंद्र मापारी सपरिवार रहते हैं । उनकी गुण-गरिष्ठ धर्मपत्नी निर्मलादेवीने अपने पीअरके सिल्लो गाँव (जिला औरंगाबाद) में वि.सं. १९७६ के श्रावण शुक्ल एकम के शुभ दिन (दि. १-१०-७६) एक
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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