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________________ ६२ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग आत्मसात् किया जाय तो घर-घरमें और घट घटमें व्याप्त संघर्ष और संक्लेश अदृश्य हो जाय और प्रेम वात्सल्य के कारण इसी धरती पर स्वर्गीय वातावरणका अनुभव हो सके इसमें संदेह नहीं । - पंजाब केसरी प. पू. आ. भ. श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजी म.सा. के समुदायमें वर्तमानकालीन गच्छाधिपति प.पू. आ.भ. श्री विजय इन्द्रदिन्नसूरीश्वरजी म. सा. परमार क्षत्रिय जातिके शासनरत्न हैं । शासन सम्राट प.पू. आ. भ. श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी म.सा. के समुदायके स्व. गच्छाधिपति शासन प्रभावक, प.पू.आ.भ.श्री विजयमेरुप्रभसूरीश्वरजी म.सा. भी ब्राह्मण कुलोत्पन्न शासनरत्न थे । वे गृहस्थ जीवनमें खंभात नगरमें एक जैन श्रेष्ठीके घरमें रसोईये के रूपमें काम करते थे, मगर सत्संगके योगसे उनका जीवन परिवर्तन हुआ था । विमलगच्छके वर्तमान गच्छनायक प.पू. आ. भ. श्री प्रद्युम्नविमलसूरीश्वरजी म.सा. भी ब्राह्मण कुलमें उत्पन्न हुए हैं । उनके भाई ने भी दीक्षा अंगीकार की है । सुप्रसिद्ध युवा प्रतिबोधक प. पू. पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखरविजयजी म.सा. के शिष्यरत्न, जोशीले प्रवचनकार प. पू. पं. श्री चन्द्रजितविजयजी म.सा. और प. पू. पं. श्री इन्द्रजितविजयजी म.सा. भी पटेल जातिमें उत्पन्न हुए हैं । प्रजापति बालुभाई ने आठ कोटि बड़ी पक्ष स्थानकवासी संप्रदाय में दीक्षा ली थी और पंडितरत्न श्री छोटालालजी स्वामीके शिष्य प्राणलाल मुनि बने थे । उन्होंने अनुमोदनीय गुरुसेवा की थी । 888
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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