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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कौनसे कुल के? अपना आचार ही वास्तविक संपत्ति है।' इत्यादि बातें रोज मधुर शब्दों में कहती-समझाती, किंतु मैं उस समय भावी में होने वाले पाप के उदय को खींच लाने वाली प्रबल मोह की धारा में भान भूला श्राविका का कुछ नहीं सुनता था। उस समय मेरे जीवन में ऐसा उन्माद था, कि मैं प्रति सप्ताह 5 सेर आलु, 3 सेर प्याज, 1 सेर लाल मूली को हजम कर लेता था!!! इतना होने के बावजूद भी जीव को कोई पश्चात्ताप नहीं। मन में कोई दुःख नहीं। विषय वासना का भी पार नहीं। दिन क्या या रात क्या? तिथि क्या? और पर्व क्या? मद-मस्त बने सांढ की तरह मेरा जीवन एकदम अमर्यादित बन गया!!! इन सबके बावजूद श्राविका ने कभी भी बेरुखी नहीं दिखाई। वह |मेरी अच्छी बूरी प्रत्येक आज्ञा को न जाने क्यों शिरोधार्य करती रही। किन्तु अब समझ में आता है कि यह सब श्राविका ने दूरगामी दृष्टि से सोचकर मनोवैज्ञानिक तरीके से ही किया। इसमें मैं कई बूरे पापों से बच गया, यह श्राविका की दूरगामी दृष्टि का ही फल है!!! इस प्रकार मेरे जीवन के निर्माण में पूरी रुचि लेने वाली श्राविका ने ही वास्तव में पत्नी के रूप में मेरी पथप्रदर्शिका बनकर सफल मेहनत की, ऐसा आज कृतज्ञता से मेरा हदय बोल रहा है। | मैं डॉक्टरी उच्च डिग्री प्राप्त करने इंग्लैण्ड आया, फिर भी पुण्य बल के कारण चाहिए उससे कई गुना ज्यादा मिली पौद्गलिक भव्य सामग्री की भरमार में विवेक बुद्धि खो बैठा। मैंने छोटी वय में गरीबों के आँसू पोंछने के ध्येय से डॉक्टरी लाइन ली थी, लेकिन भौतिक सुखों की अनर्गल सामग्री से वापिस भारत जाने की इच्छा ही मर गयी। भारत से पत्र आते ही रहते, बडे भाई टकोर भी करते कि "भाई! अब देश में कब आना है? वहाँ के विलासी जीवन में, अपनी संस्कार संपत्ति को मत | गंवा! अभ्यास हो गया, M.R.C.P. की डिग्री मिल गई, अब भाई! वतन में आ जा! यहाँ की असहाय दुःखी गरीब जनता का मित्र बन।" धर्मसंस्कारों की प्रहरी माँ के भी बहुत मीठे उपालम्भ आते, किंतु "अंधा आगल आरसी, बहेरा आगल गीत" की तरह कर्म के कठोर उदय ने मेरे । 33
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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