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________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हदय को पत्थर बना दिया था। मुझे कोई असर नहीं हुआ। किंतु भावी के गर्भ में क्या छिपा है? उसे तो सर्वज्ञ प्रभु के बिना कौन जान सकता है? मुझे ई.स. 1961 के जनवरी के प्रारंभ में, सामान्य बुखार और कमर के रोग की शुरूआत हुई। तात्कालिक सामान्य उपचार किये। लेकिन धीरे-धीरे दर्द जोर पकड़ता रहा। पीड़ा के कारण मैं विशिष्ट चिकित्सक के रूप में मेरे कर्तव्य की भी उपेक्षा करता गया। बाद में मेरे ऊपर के डॉक्टर की सलाह से खून जाँच, एक्सरे-स्क्रीनिंग आदि कराये, किंतु सभी सामान्य ही आये। दर्द का कुछ कारण समझ में नहीं आया। 6 फरवरी को रोग ने उग्र रूप धारण कर लिया, शरीर का तापमान बढ़ा, बुखार बढ़ा, कमर का दर्द असह्य हो गया। हमारे विभाग के डॉ. खान को तात्कालिक बुलाया। मैंने उस समय श्राविका को कहा, "इस रोग की अमुक दवा का मुझे उल्टा असर होता है, इसलिए डॉ. खान को यह बता देना।" इस प्रकार सूचना देने के बाद डॉ. खान 12 बजे तक नहीं आए, जिसके कारण श्राविका नित्यक्रम निपटाने बाथरुम में गई और डॉ. खान आ गये। उन्होंने वेदना से विहवल बने मेरी जाँच की। जिस दवा से मुझे उल्टा असर होता था, वही दवा भावी योग से दे दी। एकाध घंटे में जोरदार रीएक्शन हुआ। दर्द ने कहर ढा दिया। रहा नहीं जाये, नारकी के जैसी भंयकर वेदना की चक्की में पीलाता रहा। जोर से चिल्लाने लगा, उल्टियों से आंतें बाहर आने लगीं। मेरे पास रहे डॉ. भी घबराने लगे। मेरे विभाग के सबसे बड़े डॉ. गिब्सन को तात्कालिक बुलाया, हमारे अस्पताल के सभी डॉक्टरों की कोन्फ्रेंस हुई, सभी ने मेरी जाँच की, परन्तु वे मेरे रोग का निदान भी नहीं कर पाये। मैंने इस जीवन में आसक्तिपूर्वक भोगे विषय और अभक्ष्य भोजनादि से बांधे हुए तीव्र पापकर्म के उदय ने सबको भुला दिया, सभी व्याकुल हो उठे। मेरी कार्यशैली, हंसमुख स्वभाव और पुण्य के प्रभाव से इंग्लेण्ड जैसी धरती पर भारतीय होने के बावजूद मेरे प्रति सभी का प्रबल प्रेम था। 34
SR No.032466
Book TitleJiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year2000
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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